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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


परन्तु माणिकलाल ने मेरी ओर मुस्कराते हुए देखकर कहा, ‘‘यहाँ प्रबन्ध तो करना ही होगा। क्यों वैद्यजी!’’

मैंने कुछ साहस पकड़ कर कहा, ‘‘यह तो होगा ही। और बताइए, क्या आज्ञा है?’’

‘‘और कुछ भी नहीं। सात तारीख को लड़की और माणिकलाल जी के पाँच निकटस्थ सम्बन्धी हमारे यहाँ आयेंगे और उनके सामने, जो कुछ दहेज के रूप में मुझे देना है, मैं दूँगा। आप तो दिल्ली में रहते हैं न? मेरा वहाँ आना-जाना लगा रहता है। अतः आपसे तो प्रायः मिलना होता ही रहेगा।

‘‘मेरा तो इतना ही कहना है कि नोरा मुझको और अपनी माँ को बहुत प्रिय है। हमारी यह प्रार्थना है कि आप उसको सुखी रखें। मैं आपका जीवन-भर आभारी रहूँगा।’’

मैंने हाथ जोड़ उन वृद्ध महाशय से कहा, ‘‘मनुष्य जो कुछ कर सकता है, वह सब-कुछ आपकी लड़की को सुखी रखने के लिए किया जायेगा। आप भगवान् से प्रार्थना करें कि हमारी सामर्थ्य को बनाए रखे।’’

‘‘मैंने एक ज्योतिषी से नोरा के विषय में पूछा था। उसका कहना था कि वह महारानियों की भाँति रहेगी।’’

मैंने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘क्षमा करें, आज राजे-रानियों का काल तो रहा नहीं, इस पर भी मनुष्य जो कुछ कर सकता है, वह किया जायेगा, आप विश्वास रखें।’’

जब वे लोग कार्यक्रम की व्याख्या निश्चय कर चले गये तो मैंने माणिकलाल से कहा, ‘‘यह तो कोई झक्की आदमी प्रतीत होता है।’’

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