उपन्यास >> अवतरण अवतरणगुरुदत्त
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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।
मैं कुछ नहीं कह सका। कारणयह है कि मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, जब मैंने यह सुना कि माणिकलाल मेरे यहाँ आने का कारण जानता है और उसने मेरा नाम अपने संरक्षक के रूप में अपनी ससुराल वालों को पहले ही बता रखा है। मैं आश्चर्यवत् अवाक् सबके साथ कोठी के भीतर उसी कमरे में जा पहुँचा, जहाँ माणिकलाल से पहले बातें कर रहा था।
बैठते ही आने वालों में से एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा, ‘‘देखिए वैद्यजी! नोरा मेरी इकलौती सन्तान है और मैं शादी बड़ी धूमधाम से चाहता हूँ। बारात बहुत सजधज कर आनी चाहिए। यह मैं जानता हूँ कि बम्बई से तो बहुत लम्बी-चौड़ी बारात आ नहीं सकती। इस पर भी शान-शौकत तो यहाँ पर बन ही सकती है।
‘‘बाजा बहुत बढ़िया होना चाहिए। मोटर, जिसमें लड़का आये, अमृतसर में एक नम्बर होनी चाहिए। आपके सब बाराती भी, मोटरों हों और देखिये, विवाह के पश्चात् मेरी लड़की की डोली भी इसी प्रकार धूमधाम से जायेगी।
‘‘बस आपको यही प्रबन्ध करना है। शेष मैं करूँगा। बारात रात साढ़े-सात बजे हमारे यहाँ पहुँचेगी और आठ बजे बारातियों को खाना मिलेगा। नौ बजे विवाह संस्कार आरम्भ होगा। साढ़े दस बजे विवाह समाप्त होकर, ग्यारह बजे विदाई हो जायेगी।
‘‘बस यही कार्यक्रम होगा।’’
मैं अभी भी आश्चर्ययवत् अवाक् बैठा था। कारण यह है कि नोरा के पिता की यह माँग थी कि उसकी लड़की की बारात धूमधाम से आये, बच्चों की-सी बात प्रतीत हो रही थी। इस कारण मैंने उनका कुछ उत्तर नहीं दिया।
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