लोगों की राय

उपन्यास >> अवतरण

अवतरण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

137 पाठक हैं

हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


मैं इससे भारी असमंजस में पड़ गया, परन्तु शीघ्र ही अपने को सम्भालकर कहने लगा, ‘‘माताजी! धर्म के दो रूप हैं। महाराज मनु ने धर्म का एक व्यापक रूप बताया है। वह रूप सब कालों में, सब स्थानों पर, सब अवस्थाओं में और कुलों में मान्य है। वह रूप है–
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधों दशकं धर्मलक्षणम्।।१
१.धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच (पवित्रता), इन्द्रियों को वश में रखना, ज्ञान विद्या, सत्य, क्रोध का त्याग में दस धर्म के लक्षण है।।६-९२।।

‘‘इनके अतिरिक्त धर्म का एक विशेष रूप भी है। वह वर्ण-भेद, लिंग-भेद, आश्रम-भेद, स्थान-काल-भेद और वंश-भेद के कारण भिन्न-भिन्न होता है। परम्पराएँ इनमें मुख्य मानी जाती हैं।

‘‘आधारभूत अर्थात् व्यापर धर्म से तो इस प्रकार सन्तान-उत्पन्न करना धर्म नहीं माना गया, परन्तु गृहस्थ आश्रम में सन्तानोत्पत्ति एक कर्त्तव्य है। इसके लिए मनु महाराज ने यह व्यवस्था दी है–
विधवायां नियुक्तस्तु घृताक्तो वाग्यतो निशि।
एकमुत्पादयेत्पुत्रं न द्वितीयं कथंचन।।२
२. विधवा स्त्री में पति या गुरु से नियुक्त देवर या सपण्डि पुरुष मौन होकर रात्रि में एक पुत्र को उत्पन्न करे, द्वितीय पुत्र कदापि उत्पन्न न करे।।९-६0।।

‘‘यह आपद्-धर्म में ही स्वीकार किया गया है।’’

‘‘परन्तु,’’ राजमाता का प्रश्न था, ‘‘क्या हमारे यहाँ इस आषद्- धर्म का अवसर आया है अथवा नहीं?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book