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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘पाण्डु उसका सेनापति जो रहेगा।’’ भीष्म ने कहा।

‘‘नहीं ज्येष्ठजी! यह उचित नहीं। होना यह चाहिए कि पांडु सम्राट हो और सेनापति भी। धृतराष्ट राजा का मन्त्री-पद ग्रहण करे।’’

राजमाता सत्यवती ने कहा कि उसको अपने बड़े पौत्र को राजगद्दी पर बैठते देख बड़ी प्रसन्नता होगी, महारानी अम्बिका नहीं मानीं।

दूसरी ओर महारानी अम्बालिका का कहना था, ‘‘आप माँ-बेटे ने अपनी भावनाओं की पूर्ति में राज्य को चौपट करने का प्रबन्ध कर दिया है। हम दोनों बहनों ने अपने विचार से एक घृणित कार्य कर आपके कुल को बचाया है और राज्य के लिए राजकुमार जाये हैं। अब पुनः दोनों माँ-पुत्र भावनामय होकर राज्य की जड़ों में तेल देने के योजना कर रहे हैं। धृतराष्ट्र को ऐसा बोझ ढोना पड़ेगा, जिसके योग्य वह है नहीं और राज्य में वह उच्छृंखलता चलेगी कि पुनः इसकी रक्षा कर सकना असम्भव हो जायेगा।’’

इस पर राजमाता ने मुझसे पूछ लिया, ‘‘आप क्या कहते हैं संजयजी?’’

मेरा स्पष्ट उत्तर था, ‘‘दोनों राजकुमारों में पांडु राज्य चलाने में अधिक योग्य सिद्ध होगा।’’

राजमाता ने पुनः कहा ‘‘धृतराष्ट्र कौरव-सम्राट् कहाये और पांडू मन्त्री बन अपने भाई की सहायता क्यों न करें।’’

इस पर भीष्मजी ने यह व्यवस्था दे दी, ‘‘मैं समझता हूँ कि समझौता हो जाना चाहिये। धृतराष्ट्र और पांडु दोनों सम्राट् हों और दोनों मिल कर राज्य करें। दोनों में जिसका पुत्र बड़ा हो, वह उतराधिकारी बने।’’

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