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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘पंडित! यह इसलिए कि तोल और लम्बाई पर वस्तु का मूल्य निश्चित किया जाता है। जो लम्बा गज रखते हैं, वे मूल्य भी अधिक लेते हैं। क्रय करने वाले भी तो वस्त्र का मूल्य कम देना चाहते हैं। इसी प्रकार दूध वाला भी दूध में जल मिला देता है’’

‘‘इन युक्तियों को सुन सोम अवाक् खड़ा रह गया। राजकुमार ने समझा कि सोम निरुत्तर हो गया है। इस कारण उन्होंने पुनः कहा, ‘देखो पंडित! धर्म-व्यवस्था यह है कि प्रत्येक व्यापारी एक रजत बिक्री पर दो टका राज्य को कर दे। यह सब व्यापारी देते हैं। इस कारण ये धर्म को मानने वाले हैं।’’

‘सोम वहाँ से चला आया और हम ब्राह्मण का कार्य छोड़कर ग्वालों का कार्य करने लगे है। दूध बाजार में सस्ता विकता है। अतः प्रतिस्पर्धा करने के लिए हमें भी दूध में पानी मिलाना पड़ता है। इस कुकर्म का सोम के मन पर इतना गम्भीर प्रभाव पड़ा कि वह रुग्ण रहने लगा। उसकी भूख समाप्त हो गई और वह परलोक गमन कर गया।

‘‘अब मैं भी यही कार्य कर रहा हूँ। हमने पाँच गाय रखी हुई हैं और उनका दूध बेचकर निर्वाह कर रहे हैं।’’

मैं इस हीन अवस्था की कथा सुन अत्यन्त दुःखी हुआ और अपने मन में इन धर्म-भीरु ब्राह्मणों को इस संकटावस्था से उबारने की योजना बनाने लगा। इस पर मुझे स्मरण हो आया कि मैं वहाँ किस प्रयोजन से आया था। मैंने कहा, ‘‘मैं यत्न करूँगा कि आपकी योग्यतानुसार आपको कार्य मिले। मुझको विदित नहीं था कि इस नगर में विद्वान् ब्राह्मणों की यह दुर्दशा है। आप क्षमा करें। मैं तुरन्त आपको कोई निश्चित सहायता की बात तो नहीं बता सकता। मुझको राज्याधिकारियों से इसके लिए कदाचित् संघर्ष करना पड़ेगा।

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