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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘वन-विहार के लिए माँ! आज पाण्डु ने एक भागते हुए मृग को निशाना मारा है।’ विदुर ने कहा।

‘‘तो पाण्डु अब मृगया करने लगा है?’’

‘‘यह राजकुमारों की शिक्षा का एक अंग है।’’ मैंने कहा।

‘‘और यह धृतराष्ट्र क्या करता है?’’

‘‘युवराज धृतराष्ट्र तो मृगया कर नहीं सकता। जब पांडु मृग को मारकर लाया तो धृतराष्ट्र उसको टटोल-टटोलकर अनुभव करने लगा कि यह कितना बड़ा है और कैसा है। वह इसी में प्रसन्नता अनुभव करता है।’’

अम्बिका ने दीर्घ निःवास छोड़ा। मैं अनुभव कर रहा था कि धृतराष्ट्र की अयोग्यता को सुन माँ को दुःख हुआ है, परन्तु उसने शीघ्र ही अपने को स्थिर कर कहा, ‘‘धृतराष्ट्र का अब विवाह होगा?’’

‘‘महारानीजी! कब?’’

‘‘जब कोई राजकुमारी मिल जाय।’’

‘‘कुरुवंश के तो मृतप्रायः व्यक्ति को भी पत्नी मिल जायेगी, फिर धृतराष्ट्र तो सुन्दर युवक है।’’

‘‘अम्बिका मुस्कराकर बोली, ‘‘भारत के प्रायः सब राज्यों में राजदूत भेजे जा चुके हैं और अभी तक कोई भी राजा अपनी राजकुमारी देने को तैयार नहीं हुआ।’’

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