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गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :590
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9552

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हिन्दुओं में यह किंवदंति है कि यदि महाभारत की कथा की जायें तो कथा समाप्त होने से पूर्व ही सुनने वालों में लाठी चल जाती है।


‘‘देखो संजय! इनका पूर्वज ययाति अपनी विषय-लोलुपता को जानते हुए भी स्वर्गारोहण की इच्छा करने लगा तो हमने उसकी सहायता की और उसको स्वर्गारोहण१ (१. स्वर्ग लोक किस ओर है, इसका वर्णण महाभारत आदि पर्व के ११९ वें अध्याय के श्लोक ७ से १४ तक में वर्णित है। ) के लिए मार्ग दे दिया। परन्तु कुछ ऋषि ब्रह्माजी का दर्शन करने जा रहे थे। पांडु जो उस समय वानप्रस्थ आश्रम में थे, वह भी पत्नियों सहित जाने की इच्छा करने लगे। ऋषियों ने बताया कि ब्रह्माजी का देश स्वर्ग को पार कर आता है। जब पांडु अपनी स्त्रियों सहित चल पड़े तो गिरिराज ने पांडु को जाने से मना करते हुए कहाः

आक्रीडभूमिं देवानां गन्धर्वाप्सरसां तथा
उद्यानानि कुबेरस्य समानि विषमाणि च। ११९-११
महानदीनितम्बांश्च गहनान् गिरिह्वरान्
सन्ति नित्यहिमा देशा निर्वृक्षमृपक्षिणः।।१२
सन्ति क्वचिन्महादर्यो दुर्गाः कश्चिद् दुरासदाः।
नातिक्रामेत पक्षी यान् कुत एवेतरे मृगाः।।१३
वायुरेको हि यात्यत्र सिद्धाश्च परमर्षयः
गच्छन्त्यौ शैलराजेऽस्मिन् राजपुत्र्यों कथं त्विमे।।१४

वहाँ जाकर वह अपनी शेखी बघारने लगा। परिणाम यह हुआ कि उसको वहाँ से धक्के मार-मार कर निकालना पड़ा।’’

‘‘एक बार इसी परिवार के महाराज दुष्यन्त ने जब अपने विषयरत होने के कारण, अपनी निर्दोष पत्नी को दुष्ट तपस्विनी कहकर अपने राज्य से निकल जाने की धमकी दी थी तो हमने अपना प्रभाव प्रयोग कर उसको अपने पुत्र भरत को स्वीकार करने पर विवश कर दिया। इसमें हमारा प्रयोजन इस वंश में ऋषि-आश्रम से शिक्षा-प्राप्त एक बालक को प्रवेश दिलाना था। भरत ने तो अपनी शिक्षा-दीक्षा का लाभ उठाया। देश-भर में वेद-शास्त्र, यज्ञ-यागादिक का प्रचलन कर दिया। वेद के ज्ञाताओ की महिमा बढ़ा दी, परन्तु उसकी सन्तान चरित्र-भ्रष्ट निकली। इससे क्रुद्ध होकर रानियों ने उनको मरवा डाला। अब बताओ, क्या इस परिवार के रक्त में ही कुछ दोष नहीं है?

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