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भज गोविन्दम्

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9557

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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका


शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ,
मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं,
सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥25॥

(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)

अपने शत्रु या  मित्र से, पुत्र या बन्धु-बांधवों से झगड़ने मे या दोस्ती करने में अपनी शक्ति बरबाद न करो। अपने को सर्वत्र (सब जीव और प्राणी में ) देखो और अज्ञान से उत्पन्न अनेकत्व की भावना को त्याग दो ॥25॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)

shatrau mitre putre bandhau
maa kuru yatnam vigrahasandhau
sarvasminnapi pashyaatmaanam
sarvatrotsrija bhedaagyaanam ॥25॥

Try not to win the love of your friends, brothers, relatives and son(s) or to fight with your enemies. See yourself in everyone and give up ignorance of duality everywhere.॥25॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)

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