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भज गोविन्दम्

आदि शंकराचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9557

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ब्रह्म साधना के साधकों के लिए प्रवेशिका


त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः,
व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं,
वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम् ॥24॥

(भज गोविन्दं भज गोविन्दं,...)

तुममें, मुझमें और सब जगह केवल एक ही व्यापक सत्य (विष्णु) है। तुम अधीर होकर मुझसे अकारण क्रुद्ध हो रहे हो। अगर तुम शीघ्र विष्णुत्व प्राप्त करना चाहते हो (विष्णु होना चाहते हो) तो हर परिस्थिति में अपने मन को एक सा रखो ॥24॥
(गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो,.....)

tvayi mayi chaanyatraiko vishhnuh
vyartham kupyasi mayyasahishhnuh
bhava samachittah sarvatra tvam
vaajnchhasyachiraadyadi vishhnutvam  ॥24॥

Lord Vishnu resides in me, in you and in everything else, so your anger is meaningless . If you wish to attain the eternal status of Vishnu, practice equanimity all the time, in all the things. ॥24॥
(Chant Govinda, Worship Govinda…..)

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