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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


'और तुम?'

'मैं खड़ी किनारे पर आपका तैरना देखूँगी।'

'नहीं, कूदेंगे तो दोनों ही।'

'यह बालकों-जैसा हठ क्यों?'

'मन कहता है।'

'कभी मन की भावनाओं को रोक भी लिया जाता है।'

'वह क्यों?'

'दूसरे की दशा देखकर।'

'क्या तुम्हें...'

'जी...मेरा मन ठीक नहीं।'

'ओह...क्या हुआ? डॉक्टर को बुलवा लिया होता!'

'आपको अवकाश भी तो हो!'

'अवकाश? तुम्हारे लिए नहीं तो और किसके लिए होगा? चलो, हवा तेज़ है।'

विनोद बिना कुछ सुने माधवी को खींचकर भीतर ले गया और उसे बिस्तर में लेट जाने को कहा। उसने उसे कम्बल ओढ़ा दिया और कमरे की खिड़कियाँ बन्द करने लगा। माधवी उसकी घबराहट और शीघ्रता देखकर कठिनाई से हँसी रोक रही थी। खिड़कियों को बन्द करके वह उसके पास आ बैठा और अपने माथे से पसीना पोंछते हुए बोला-'तुम आराम करो, मैं अभी डॉक्टर को लेकर आया।'

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