लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> एक नदी दो पाट

एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

429 पाठक हैं

'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


दिन-भर काम में व्यस्त रहने के पश्चात् जब वह अपने मकान पर लौटता तो बीती हुई बातें जुगनुओं के समान उसके मस्तिष्क में टिमटिमाती और वह अधीर हो उठता।

एक साँझ वह कुछ देर से घर लौटा और ज्योंही उसने कमरे में प्रवेश किया, वह एकाएक रुका और आश्चर्य से मूर्ति बना देखता रह गया। सामने कालीन पर बैठी कामिनी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। घुटनों में मुँह छिपाए बड़ी देर से वह उसका मार्ग देख रही थी।

आहट होते ही उसने सिर उठाया और आशापूर्ण दृष्टि से अपने देवता की ओर देखा। उसकी आंखों में अभियोग लेशमात्र भी न था; बल्कि विशेष दृढ़ता थी, जिसे देखकर विनोद क्षण-भर के लिए काँप गया। उसकी आँखों में थकान और उदासी थी और यूं प्रतीत हो रहा था मानो एक समय से वह नींद से वंचित है।

थोड़ी देर एक-दूसरे को देखते रहने के पश्चात् कामिनी अपने स्थान से उठी और झुककर देवता के चरणों को छू लिया। विनोद ने झट पांव परे हटा लिए और कठोर स्वर में बोला, 'यह सब क्या है?'

कामिनी चुप रही और एक ओर खड़ी हो गई। विनोद ने फिर प्रश्न किया, 'अकेली आई हो क्या?'

'नहीं तो, पिताजी छोड़ने आए थे।'

'कहाँ हैं वह?'

'दोपहर की बस से वापिस लौट गए हैं।'

'और तुम्हें यहाँ छोड़ गए?'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai