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एक नदी दो पाट

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :323
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9560

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'रमन, यह नया संसार है। नव आशाएँ, नव आकांक्षाएँ, इन साधारण बातों से क्या भय।


माधवी की यह दृढ़ता देखकर विनोद मुस्करा दिया। चन्द ही घण्टों के परिचय में उसे अनुभव होने लगा मानो वे एक समय से एक-दूसरे को जानते हैं, वरना इन वन-मार्गों में किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ अकेले जाने में माधवी अवश्य कुछ झिझक प्रकट करती।
वास्तव में उसने ऐसे घराने में जन्म लिया था जहाँ पुराने विचारों की छाया न थी। वह रंगून के करोड़पति सेठ की इकलौती बेटी थी। उसके पिता प्रफुल्ल बरमन रंगून के माने हुए व्यक्ति थे। माता के बचपन में ही चल बसने से उन्होंने बेटी को बड़े लाड़-प्यार से पाला था। उसे उच्च शिक्षा दी थी। उन्हें घमण्ड और झूठे मान से बड़ी घृणा थी और यही बातें उन्होंने बेटी के मन में डाल दी थीं।

रंगून के अतिरिक्त पटना में भी उनकी भारी जमींदारी थी जो उनके छोटे भाई की देख-रेख में थी। इस समय रंगून में युद्ध का भय बढ़ने के कारण उन्होंने बेटी को उसके चाचा के पास पटना भेजना ही उचित समझा।

आसाम की पहाड़ियों में भी उनकी जमीन थी जो उन्होंने अंग्रेज कम्पनी को चाय और तम्बाकू की कृषि के लिए दे रखी थी। यह सब बातें वह विनोद को एक कहानी के समान सुनाती रही। इस छोटी-सी मुलाकात में उनमें गूढ़ मित्रता हो गई थी।

'तो कहाँ है तम्हारे वह खेत?' विनोद ने पूछा।

'इन्ही पहाड़ियों में कहीं। परन्तु मुझे ठीक ज्ञात नहीं। मैं बचपन मे ही केवल एक बार पिताजी के साथ यहाँ आई थी।'

हवाई अड्डे के बाहर ही घोड़े किराये पर मिलते थे। उन्होंने दो घोड़े लिए और उन घाटियों को देखने चल पड़े।

सुन्दर दृश्य, सुहावनी ऋतु और जवानी का उत्साह। थोड़े ही समय में वे बहुत दूर निकल गए। विनोद के लिए यह सुनसान वन-मार्ग मानो हर्षोल्लास से चहक उठा। वह उसकी भोली-भाली आकृति में खोया मतवाला बना बढ़ता रहा।

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