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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘जमींदार साहब कैसे हैं? उन्हें भी साथ ले आए होते।’

ठीक हैं, दिल तो उनका भी आपसे मिलने को बहुत चाहता था परंतु उनका स्वास्थ्य उन्हें यात्रा की आज्ञा नहीं देता। कुछ स्वास्थ्य और कुछ उनकी बनाई हुई दुनिया। उसे भी तो वह छोडना नहीं चाहते। सेठ साहब हंसते हुए बोले, ‘अच्छा दीपक, मैं एक आवश्यक काम से बाहर जा रहा हूं और दोपहर तक लौटूंगा। फिर जी भरकर बातें होंगी। इसे अपना ही घर समझो।’

‘जी।’

‘लिली, इनके स्नान आदि का प्रबंध कर दो और किशन से कहो कि बाहर से सामाने ले आए।’ और यह कहते सेठ साहब बाहर निकल गए।

दीपक और लिली एक-दूसरे को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहे थे। दोनों कुछ देर इसी प्रकार खड़े रहे।

‘यदि मुझसे कोई अशिष्टता हो गई हो तो मैं क्षमा चाहती हूं।’ लिली ने दबे स्वर में कहा और पास वाले कमरे में भाग गई।

दीपक दबे पांव कमरे में प्रविष्ट हुआ। लिली चुपचाप पलंग पर लेटी छत की ओर देख रही थी।

‘लिली!’ दीपक ने धीरे-से पुकारा।

‘जी? ओह मैं भूल गई। स्नान के लिए पानी।’ वह शीघ्रता से उठी।

‘देखिए मुझे कहीं जाना तो है ही नहीं और आप भी तो लंबी यात्रा से लौटी हैं, तनिक आराम कर लीजिए। मैं पानी के लिए किशन को कहे देता हूं।’ दीपक ने नम्रता भरे स्वर में कहा और किशन को आवाज दे दी।

‘आपने मेरी बात का कुछ बुरा तो नहीं माना?’

‘नहीं साहब, मैं बुरा क्यों मानने लगा। यह भी जीवन में एक अद्भुत संयोग हुआ, हम सहयात्री बने और वह भी खूब....।’ दीपक ने मुस्कराते हुए कहा।

‘मैं दिल्ली एक सहेली के विवाह में गई थी। वापसी पर हम चार लड़कियां थीं। ‘लेडीज’ कम्पार्टमेंट में सीट्स न मिली, ‘जेन्टस’ में ही बुक करवा लीं, वे सब बीच में ही मथुरा उतर गईं और मुझे बंबई तक अकेला आना पड़ा।’

‘खैर, इसमें बुराई ही क्या है? आज की नई सभ्यता में पली लड़कियां तो सारे संसार में अकेली घूम आवें तो भी कोई आश्चर्य नहीं। हम जैसे जिंदादिल छोकरे आप लोगों का कर भी क्या सकते हैं!’

‘आप तो लज्जित कर रहे हैं।’

‘नहीं तो। यह तो वैसे ही हंसी हो रही थी।’

दोपहर तक दोनों इसी प्रकार की बातें करते रहे और अपने-अपने जीवन के मनोहर चुटकुले एक-दूसरे को सुनाते रहे। दोपहर बाद सेठ साहब आए और सबने एक साथ बैठकर खाना खाया और फिर देर तक गप्पें चलती रहीं। शाम को सेठ साहब दीपक और लिली को अपने साथ बाहर सैर को ले गए और एक मित्र के घर में ही भोजन करके देर से लौटे।

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