लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर

घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

239 पाठक हैं

लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

3

दीपक को श्यामसुंदर का अतिथि बने आज आठ दिन हो चुके थे। सवेरे सेठ साहब के साथ ही कारखाने चला जाता और शाम को ठीक पांच बजे लौट आता। लिली भी उसी समय कॉलेज से आती। दोनों एक साथ ही चाय पीते।

वह सोचता, आखिर कब तक वह इसी प्रकार उनका अतिथि बना रहेगा? उसे अब किसी दूसरे स्थान पर रहने का प्रबंध कर लेना चाहिए।

एक दिन सवेरे जब सब बैठे चाय पी रहे थे तो दीपक ने सेठ साहब से कह ही दिया-

‘बंबई में स्थान तो शीघ्र मिलना कठिन है। मेरे एक मित्र यहां ग्रीन होटल में मैनेजर हैं। अभी तो एक कमरे का प्रबंध वहां कर लिया जाए। स्थान भी अच्छा है और किराया भी उचित। आपकी क्या सम्मति है?’

‘परंतु इतनी जल्दी क्या है?’ सेठ साहब ने केक का टुकड़ा मुंह में डालते हुए कहा, ‘होटलों में रहना मुझे पसंद नहीं और फिर तुम अकेले हो। पहले काम-काज का प्रबंध हो जाने दो फिर देखा जाएगा। घर में ही तो बैठे हो।’

‘वह तो सेठजी आपकी कृपा है, परंतु फिर भी....।’

‘अच्छा छोड़ो इस विषय को।’ सेठ साहब ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा, ‘पहले काम की बातें हो जाएं। कल मैं ज्वालाप्रसाद के यहां गया था और तुम्हारे बारे में बातचीत भी की। परंतु सच पूछो तो मुझे वह काम तुम्हारे वश का नहीं दीखता। बहुत-सी कठिनाइयां हैं। तुम्हारे पास अभी अनुभव की कमी है। कम से कम एक डेढ़ वर्ष ट्रेनिंग में लगाओ तो कारोबार के सही भेदभाव जान सकते हो और यदि ऐसे ही पैसा लगाया जाए तो हानि होने का भय है।’

‘यह तो ठीक कहते हैं। आजकल किसी प्रकार का रिस्क उठाने का समय नहीं, जो हो सब सोच-समझकर करना चाहिए। यह भी तो आवश्यक नहीं कि यही काम किया जाए। मुझे तो कुछ करना है, ताकि पिताजी यह न कह सकें कि एक छोटी-सी हठ के कारण मैंने जीवन नष्ट कर लिया और मुझे एक हारे सिपाही की भांति उन्हीं सूनी घाटियों में आश्रय लेना पड़े जिनसे विदा ले आया हूं।’

‘इसका अभी से क्या कहा जा सकता है? मनुष्य का कर्त्तव्य तो प्रयत्न करना है, सो किए जाओ।’

सेठ साहब ने बात बदलते हुए लिली से कहा, जो चुपचाप बैठी दोनों की बातें सुन रही थी-

‘मेरी कुछ फाइलें यहां पड़ी थी?’

‘वे सामने अलमारी में रखी हैं, अभी ला देती हूं।’ लिली ने कुर्सी से उठते हुए उत्तर दिया।

सेठ साहब ने जेब से घड़ी निकालकर देखते हुए कहा-

‘दीपक, एक काम करो। आज तुम बस में सीधे फैक्टरी चले जाओ। मैनेजर आ चुका होगा। उससे कहना कि मद्रास की पार्टी का सारा माल तैयार करवा दें, मुझे कुछ देर हो जाएगी। इम्पोर्ट ऑफिस जाना है। तुम वहीं रहना।’

‘यह लीजिए।’ लिली ने फाइलें देते हुए कहा।

अच्छा लिली, तुम्हें भी तो कॉलेज जाना होगा। जल्दी से तैयार होकर दीपक के साथ ही बस में चली जाओ। मुझे तो जाने में देर है। दस बजे दफ्तर खुलेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai