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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

चिनी (किन्नर-देश) में मुझे जरूरत पड़ी। पता लगा, मिडिल स्कूल के हेडमास्टर साहब क्षौर के हथियार भी रखते हैं, और अच्छा बनाना भी जानते हैं। यह भी पता लगा कि हेडमास्टर साहब स्वयं भले ही बना दें, लेकिन हथियार को दूसरे के हाथों में नहीं देना चाहते - “लेखनी पुस्तकी नारी परहस्तेगता गता” के स्थान पर “लेखनी क्षुरिका कर्त्री परहस्तेगता गता” कहना चाहिए। हेडमास्टर साहब अपना क्षौर-शस्त्र मुझे देने में आनाकनी नहीं करते, क्योंकि न देने का कारण उनका यही था कि अनाड़ी आदमी शस्त्र के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करना जानता। उन्होंने आकर स्वयं मेरे बाल काट दिए। अपने लिए होने पर तो काटने की मशीन काफी है। मैं वर्षों उसे अपने पास रखा करता था, किंतु जब आपको क्षौरकर्म के द्वारा तात्का‍लिक स्वावलंबन का मार्ग ढूँढ़ना है, तो जैसे-तैसे हजाम बनने से काम नहीं चलेगा। आपको इस कला पर अधिकार प्राप्त करना चाहिए, और जिस तरह चिनी के हेडमास्टर और उनके शिष्यों में एक दर्जन तरुण अच्छी हजामत बना सकते हैं, वैसा अभ्यास होना चाहिए। हजामत कोई सस्ती मजूरी की चीज नहीं है। यूरोप के देशों में तो एक हजाम एक प्रोफेसर के बराबर पैसा कमा सकता है। एशिया के भी अधिकांश भागों में दो-चार हजामत बना कर आदमी चार-पाँच दिन का खर्चा जमा कर सकता है। भावी घुमक्कड़ तरुणों से मैं कहूँगा, कि ब्लेड से दाढ़ी-मूँछ तथा मशीन से बाल काटने तक ही सीमित न रहकर इस कला की अगली सीढ़ियों को पार कर लेना चाहिए। यह काम हाई स्कूल के अंतिम दो वर्षों में सीखा जा सकता है और कालेज में तो बहुत खुशी से अपने को अभ्यासी बनाया जा सकता है।

तरुण घुमक्कड़ों के लिए जैसे क्षौर कर्म लाभदायक है, वैसे ही घुमक्कड़ तरुणियों के लिए प्रसाधन कला है। अपने खाली समय में वह इसे अच्छी तरह सीख सकती हैं। दुनिया के किसी भी अजांगल जाति या देश में प्रसाधन कला घुमक्कड़ तरुणी के लिए सहायक हो सकती है। चाहे उसे अपने काम के लिए उसकी आवश्यकता न हो, लेकिन दूसरों को आवश्यकता होती है। प्रसाधन-कला का अच्छा परिचय रखने वाली तरुणियाँ घूमते-घामते जहाँ-तहाँ अपनी तात्कालिक जीविका इससे अर्जित कर सकती हैं। जिस तरह क्षौर-शस्त्रों को हल्के से हल्के रूप में रखा जा सकता है, वैसे ही प्रसाधन-साधनों को भी थोड़ी-सी शीशियों और चंद शास्त्रों तक सीमित रखा जा सकता है। हाँ, यह जरूर बतला देना है कि घुमक्कड़ होने का यह अर्थ नहीं कि हर घुमक्कड़ हर किसी कला पर अधिकार प्राप्त कर सकता है। कला के सीखने में श्रम और लगन की आवश्यमकता होती है, किंतु श्रम और लगन रहने पर भी उस कला की स्वाभाविक क्षमता न होने पर आदमी सफल नहीं हो सकता। इसलिए जबर्दस्तीत किसी कला के सीखने की आवश्यकता नहीं। यदि एक में अक्षमता दीख पड़े, तो दूसरी को देखना चाहिए।

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