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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

बिना अक्षर या भाषा के ऐसी बहुत-सी कलाएँ और व्यवसाय हैं, जो घुमक्कड़ के लिए दुनिया के हर स्थान में उपयोगी हो सकते हैं। उनके द्वारा चीन-जापान में, अरब-तुर्की में, और ब्राजील-अर्जंतीन में भी स्वच्छंद विचर सकते हैं। कलाओं में बढ़ई, लोहार, सोनार की कलाओं को ले सकते हैं। हमारे देश में आज भी एक ग्रेजुएट क्लर्क से बढ़ई-लोहार कम मजदूरी नहीं पाते। साथ ही इनकी माँग हर जगह रहती है। बढ़ई का काम जिसे मालूम है, वह दुनिया में कौन सा गाँव या नगर है, जहाँ काम न पा जाय। ख्याल कीजिए आप कोरिया के एक गाँव में पहुँच गये हैं। वहाँ किसी किसान के घर में सायंकाल मेहमान हुए। सबेरे उसके मकान की किसी चीज को मरम्मत के योग्य समझकर आपने अपनी कला का प्रयोग किया। संकोच करते हुए भी किसान और कितनी ही मरम्मत करने की चीजों को आपके सामने रख देगा, हो सकता है, आप उसके लिए स्मृति-चिह्न, कोई नई चीज बना दें। निश्चय ही समझिए आपका परिचय उसी किसान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इस कला द्वारा गाँव-भर के लोगों से परिचय करते देर न लगेगी। फिर तो यदि चार-छ महीने भी वहाँ रहना चाहें, तो भी कोई तकलीफ नहीं होगी, सारा गाँव आत्मीय बन जायगा। घुमक्कड़ केवल मजूरी के ख्याल से तो काम नहीं करता है। वह काम अच्छा और ज्यादा भी करेगा, किंतु बदले में आवश्यक बहुत थोड़ी-सी चीजें लेगा। बढ़ई, लोहार, सोनार, दर्जी, धोबी, मेज कुर्सी-बुनकर आदि जैसी सभी कलाएँ बड़े काम की साबित होंगी।

घड़ीसाजी, छोटी-मोटी मशीनों की मरम्मते, बिजली-मिस्त्री का काम जैसी और भी कलाएँ हैं जिनकी सभी सभ्य देशों में एक-सी माँग है, और जिनको तरुण अपने हाईस्कूल के अंतिम वर्षों या कालेज की पढ़ाई के समय सीख सकता है। घुमक्कड़ की कलाओं के संबंध में यह वाक्य कंठस्थ कर लेना चाहिए - “सर्वसंग्रह: कर्त्तव्यो:, क: काले फलदायक:।” उसके तर्कश में हर तरह के तीर होने चाहिए, न जाने-कौन तीर की किस समय या स्थान में आवश्यकता हो। लेकिन, इसका यह अर्थ नहीं कि वह दुनिया की कलाओं, व्यवसायों पर अधिकार प्राप्त करने के लिए आधा जीवन लगा दे। यहाँ जिन कलाओं की बात कही जा रही है, वह स्वाभाविक रुचि रखने वाले व्यक्ति के लिए अल्पकाल-साध्या हैं।

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