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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577

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संवेदनशील प्रेमकथा।


चन्दर के मन में जाने कितने घाव कसक उठे। उसके मन में जाने कितना दर्द उमड़ने-सा लगा। गेसू उसे क्या समझ रही है मन में और वह कहाँ पहुँच चुका है! जिसने चन्दर की जिंदगी से अपने मन का दीप जलाया, वह आज देवता के चरण तक पहुँच गया, लेकिन चन्दर के मन की दीपशिखा? उसने अपने प्यार की चिता जला डाली। चन्दर के मुँह पर ग्लानि की कालिमा छा गयी। गेसू चुपचाप बैठी थी। सहसा बोली, “चन्दर भाई, आपको याद है, पिछले साल इन्हीं दिनों मैं सुधा से मिलने आयी थी और हसरत आपको मेरा सलाम कहने गया था?”

“याद हैï!” चन्दर ने बहुत भारी स्वर में कहा।

“इस एक साल में दुनिया कितनी बदल गयी!” गेसू ने एक गहरी साँस लेकर कहा, “एक बार ये दिन चले जाते हैं, फिर बेदर्द कभी नहीं लौटते! कभी-कभी सोचती हूँ कि सुधा होती तो फिर कॉलेज जाते, क्लास में शोर मचाते, भागकर घास में लेटते, बादलों को देखते, शेर कहते और वह चन्दर की और हम अख्तर की बातें करते...” गेसू का गला भर आया और एक आँसू चू पड़ा... “सुधा और सुधा की ब्याह-शादी का हाल बताइए। कैसे हैं उनके शौहर?”

चन्दर के मन में आया कि वह कह दे, गेसू, क्यों लज्जित करती हो! मैं वह चन्दर नहीं हूँ। मैंने अपने विश्वास का मन्दिर भ्रष्ट कर दिया...मैं प्रेत हूँ...मैंने सुधा के प्यार का गला घोंट दिया है...लेकिन पुरुष का गर्व! पुरुष का छल! उसे यह भी नहीं मालूम होने दिया कि उसका विश्वास चूर-चूर हो चुका है और पिछले कितने ही महीनों से उसने सुधा को खत लिखना भी बन्द कर दिया है और यह भी नहीं मालूम करने का प्रयास किया कि सुधा मरती है या जीती!

घंटा-भर तक दोनों सुधा के बारे में बातें करते रहे। इतने में रिक्शावाला लौट आया। गेसू ने उसे ठहरने का इशारा किया और बोली, “अच्छा, जरा सुधा का पता लिख दीजिए।” चन्दर ने एक कागज पर पता लिख दिया। गेसू ने उठने का उपक्रम किया तो चन्दर बोला, “बैठिए अभी, आपसे बातें करके आज जाने कितने दिनों की बातें याद आ रही हैं!”

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