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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

वह सोच ही रहा था कि किवाड़ खुले और पार्वती ने अंदर प्रवेश किया – उसके हाथों में गिलास था।

‘यह क्या?’

‘दूध।’

‘किसलिए?’

‘तुम भूखे हो न।’

‘तुम्हें किसने कहा?’

‘तुम्हारी आँखों ने – तुमने बाबा से झूठ कहा था न!’

‘हाँ पार्वती... और तुम भी तो...।’

‘हाँ राजन आज से पहले मैं कभी झूठ नहीं बोली – न जाने...।’

‘कोई बात नहीं, यौवन के उल्लास में अक्सर झूठ बोलना ही पड़ता है।’

‘अच्छा, अच्छा दूध पी लो, मैं चली...।’

‘ठहरो तो – देखो, तुम्हारे लिए मैं कुछ लाया हूँ।’

‘चॉकलेट!’ पार्वती ने प्रसन्नता से हाथ बढ़ाया और कुछ समय तक चुपचाप खड़ी रही, आँखें छलछला आईं।

राजन घबराते हुए बोला - ‘क्यों क्या हुआ?’

‘यूँ ही बाबूजी की याद आ गई – बचपन में वह भी मुझे हर साँझ को कैंटीन से चॉकलेट लाकर दिया करते थे।’

‘ओह...! अच्छा यह आँसू पोंछ डालो और लो...।’

‘परंतु तुमने बेकार पैसे क्यों गवाएँ?’

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