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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना

‘एक चवन्नी की तो है।’

‘चवन्नी-चवन्नी से ही तो रुपया बनता है, और हाँ – तुम तो कह रहे थे कि कलकत्ता से एक चीज मँगाई है।’

‘हाँ पार्वती, मिण्टो वायलिन’– एक अंग्रेजी साज – मुझे बजाने का बहुत शौक है।

‘और मुझे नृत्य का।’

‘सच! तुम नाच भी सकती हो?’

‘क्यों नहीं, परंतु केवल अपने देवता के सामने।’

‘मनुष्य के लिए नहीं?’

‘नहीं इनमें क्या रखा है?’

‘तो इन बेजान निर्जीव पत्थरों में क्या रखा है?’

‘राजन यह तुम नहीं समझ सकते।’

‘पारो! ओ पार्वती!’ बाबा की आवाज सुनाई दी। वह तुरंत ही भागती हुई कमरे से बाहर चली गई। राजन ने दूध का गिलास उठाया और उसे पीने लगा। पार्वती शायद शक्कर मिलाना भूल गई थी, परंतु राजन के लिए मिठास काफी थी पार्वती के हाथों ने जो छुआ था।

दूसरी सायंकाल ठीक पूजा के समय राजन मंदिर की सीढ़ियों पर पहुँच गया। जब तक छुट्टी के पश्चात् वह पार्वती से मिल नहीं लेता उसे चैन नहीं आता था। वह उससे प्रेम करने लगा था और उसे विश्वास था कि पार्वती भी उसे हृदय से चाहती है।

राजन जब कभी उसे अपना प्रेम जताना चाहता तो वह पूजा और देवताओं के किस्से ले बैठती। वह जानता था कि वह जो कुछ अनुभव करती है या तो समझती नहीं अथवा स्वयं मुख से कह नहीं सकती।

उसने निश्चय किया आज कुछ भी हो वह उसके हृदय को टटोलेगा।

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