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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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वह इन्हीं विचारों में मग्न प्रेम के मधुर स्वप्न देख रहा था कि पायल की रुन-झुन ने उसे चौंका दिया। पार्वती मुस्कुराती हुई सीढ़ियों से उतर रही थी।

तो आज भी उसने राजन को सीढ़ियों पर पाया।

राजन उसे देखते ही बोला - ‘नदी किनारे चलोगी?’

‘क्यों?’

‘घूमने।’

‘ऊँ-हूँ देर हो जाएगी।’

‘आज पहली बार कहा है सोचा था – मना नहीं करोगी।’

‘अच्छा चलती हूँ – परंतु देर....।’

‘वह मैं जानता हूँ, तुम चलो तो।’

‘दोनों नदी किनारे चल दिए।’

राजन बोला - ‘एक बात पूछूँ?’

‘क्या?’

‘यह प्रतिदिन पूजा के फूल अपने देवताओं पर चढ़ाती हो, उससे तुम्हें क्या मिलता है?’

‘बहुत कुछ।’

‘फिर भी?’

‘मन की शांति।’

‘क्या तुम्हें विश्वास है, यह फूल देवता स्वीकार कर लेते हैं?’

‘क्यों नहीं, श्रद्धापूर्वक जो कुछ चढ़ाया जाता है, वह स्वीकारार्थ ही है।’

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