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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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‘मालूम होता है तुम दोनों का आपस में प्रेम है।’

‘प्रेम! गुरुदेव यह तो मेरे प्राण हैं।’

‘परंतु छाया के पीछे दौड़ने से क्या लाभ है?’

‘मैं समझा नहीं गुरुदेव!’

‘तुम दोनों का संबंध असम्भव है।’

‘यह आप क्या कह रहे हैं?’

‘मैं नहीं.... बल्कि तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएँ यह बता रही हैं।’

‘गुरुदेव।’

‘तुम्हारे प्रेम का परिणाम।’

‘क्या गुरुदेव?’

‘निराशा, जलन और तड़प।’

‘तो क्या मेरे प्रेम का यही अंजाम होगा।’

‘तुम्हारी आँखों की पुतलियाँ यही बता रही हैं कि यह जलन और तड़प तुम्हारे ‘प्रेम’ की निशानी छोड़ जाएगी, सारा संसार उसमें जलेगा – बस यही होगा तुम्हारे प्रेम का परिणाम।’

‘परंतु मैं अपने प्रेम को भाग्य की इन रेखाओं से ऊपर मानता हूँ।’

इतने में ही प्रेम की ‘उफ’ सुनाई दी और दोनों ने उसकी ओर घूमकर देखा। वह चैतन्य हो चुकी थी। दोनों उसके पास आ गए, राजन ने महात्मा को प्रणाम किया और तुरंत ही पार्वती को सहारा देते हुए गुफा से बाहर ले आया। सब लोग दोनों को देख चकित रह गए।

राजन आश्रम ने निकलते ही लिफ्ट की ओर बढ़ा, थोड़ी दूर पर एक बालक खड़ा उनकी ओर हाथ बढ़ा रहा था। उसके हाथ में कोई वस्तु थी, जो बादलों की धुँध के कारण दिखाई नहीं दे रही थी। दोनों उसकी ओर बढ़े। बालक के हाथ में ‘मिंटो वायलन’ था, जिसे झट से राजन ने ले लिया और नीचे फेंकने को बढ़ा, पार्वती ने उसकी बाँह पकड़ते हुए कहा –‘यह क्या कर रहे हो राजन?’

‘यदि आज यह न होता तो तुम्हें यह चोट न लगती।’

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