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जलती चट्टान

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :251
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9579

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‘तुम मुझे बहुत चाहते हो न?’

‘हाँ।’

‘फिर मेरी चोट की दवा-दारू का प्रबंध भी तुम्हीं ने किया।’

‘हाँ तो।’

‘इसी प्रकार तार टूटने से ‘मिंटो वायलन’ को चोट लगी है तो क्या इसे फेंक दोगे। ठीक नहीं करवाओगे। इसे भी तो तुम बहुत चाहते हो न?’

‘परंतु तुम्हारे से अधिक नहीं।’ यह कह राजन पार्वती को सहारा देते हुए ‘लिफ्ट’ की ओर बढ़ा।

थोड़ी ही देर में दोनों लिफ्ट में बैठ सीतलवादी की ओर उड़ने लगे। बादलों ने चारों ओर से उन्हें एक बार फिर घेर लिया। पार्वती अपना सिर राजन की गोद में रखकर लेट गई। जब बादलों की गर्जन तथा बिजली की चमक दिखाई पड़ती तो अपना मुँह उसकी गोद में छिपा लेती, परंतु राजन चुपचाप बैठा सीतलवादी की ओर देख रहा था। पार्वती उसके मुरझाए चेहरे को देख सोचने लगी, शायद बाबा से डर लग रहा है कि यह क्या कहेंगे? उसने अपना हाथ राजन की ठोड़ी तक ले जाते हुए उसे बुलाया। राजन ने मुँह नीचे कर गोद में पड़ी उन दो आँखों को देखा और बोला -

‘क्यों – क्या है?’

‘किस चिंता में हो?’

‘चिंता, चिंता कैसी?’

‘देखो, छिपाओ नहीं। कोई बात अवश्य है – क्या बाबा से डर रहे हो?’

‘नहीं तो।’

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