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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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आहट सी हो रही है मेरे दर के आसपास


आहट सी हो रही है मेरे दर के आसपास

कोई ग़ज़ल टहलती है क्या घर के आसपास

जाता है ज़हन फिर उसी मंजर के आसपास
ख़ारों की अंजुमन है गुलेतर के आसपास

जब प्रेम पत्र लिख रही होगी शकुन्तला
दुष्यंत तो न होगा सरोवर के आसपास

तुम सो रहे हो चैन से फूलों की सेज पर
काँटे बिछा के मेरे मुक़द्दर के आसपास

बिजली ने अबके बार मेरे घर को फिर चुना
घर और भी कई थे मेरे घर के आसपास

सारे मकान शहर में हों काँच के अगर
पहुँचे न हाथ फिर कोई पत्थर के आसपास

मीठी नदी बुझा न सकी जब हमारी प्यास
फिर जा के क्या करेंगे समन्दर के आसपास

दुनिया में जो शुरू हुई महलों की दास्ताँ
आख़िर वो ख़त्म हो गई खण्डहर के आसपास

मैं इन हवा-ए-सुस्त से मजबूर हो गया
थी तेज़ उड़ाने भी मेरे पर के आसपास

सब कह रहे हैं ‘क़म्बरी’ सुन कर तेरी ग़ज़ल
सागर सिमट के आ गया गागर के आसपास

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