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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580

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ज़िन्दा रहे तो हमको क़लन्दर कहा गया


ज़िन्दा रहे तो हमको क़लन्दर कहा गया

सूली पे चढ़ गये तो पयम्बर कहा गया

ऐसा हमारे दौर में अक्सर कहा गया
पत्थर को मोम, मोम को पत्थर कहा गया

खुद अपनी पीठ ठोंक ली कुछ मिल गया अगर
जब कुछ नहीं मिला तो मुक़द्दर कहा गया

वैसे तो ये भी आम मकानों की तरह था
तुम साथ हो लिये तो इसे घर कहा गया

जिस रोज़ तेरी आँख ज़रा डबडबा गयी
क़तरे को उसी दिन से समन्दर कहा गया

जो रात छोड़ दिन में भी करता है रहज़नी
ऐसे सफेद पोश को रहबर कहा गया

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