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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


रेलगाड़ी अचानक पटरी से उतर गई थी। डिब्बे एक-एक करके एक-दूसरे से टकरा गए थे। इंजन जमीन में धस गया था। रात की भयानकता अंधकार का आवरण डालकर उस जंगल के वीराने में प्रलय का दृश्य प्रस्तुत कर रही थी। यात्रियों में विचित्र होहल्ला मच गया था।

प्रत्येक यात्री एक-दूसरे से बिछुड़कर रह गया। कोई किसी का सहारा रहा न कोई किसी का साथी। बस एक विधाता का नाम था जो चीखतें-चिल्लाते, रोते-धोते यात्रियों के अधरों पर था। घावों से निढाल कोई कराह रहा था, कोई सिसक रहा या और कोई खून से लथपथ था। किसी के प्राण-पखेरू निकल चुके थे और किसी के निकलने वाले थे। त्राहि-त्राहि मची हुई थी।

इस ट्रेन दुर्घटना के कोई तीन दिन बाद बड़ी कठिनाई से अंजना ने अपनी सहेली का पता लगाया। भाग्य ने अंजना को जीवन-दान दिया था। साधारण-सी खराशें आई थीं। चेतना लौटते ही उसने पूनम की तलाश शुरू कर दी थी। उसे अपनी ज़िंदगी, अपने दुख-दर्द की परवाह नहीं थी। पूनम को ढूंढ़ने के सिवा उसे और कुछ सूझता नहीं था। कई दिनों तक वह भटकती रही।

अन्त में एक दुर्घटना-पीड़ित सहायता शिविर में एक रजिस्टर पर पूनम का नाम मिला। वह खुशी से पागल हो जाती लेकिन आस-पास की दशा देखकर वह सिहर उठी। वह तुरंत अस्थायी अस्पताल में जा घुसी और उसकी नजरें चारों ओर पूनम को खोजने लगीं। घायलों की आहें और उनकी बुरी दशा उसे साहसहीन न बना सकीं। ऐसे दुखद वातावरण के बीच आशा की एक किरण विह्वलता के धुप अंधेरे में उसे धीरज बंधा रही थी। वह पूनम और उसके बच्चे को देखने के लिए बेकल थी।

पूनम के लिए प्यासी आंखें उन तमाम घायलों को टटोल रही थीं जिनमें वह कहीं छिपी बैठी थी। वह रोगियों की चारपाइयों की लाइन के साथ-साथ आगे बढ़ती गई।

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