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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


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बेमौसम की झड़ी लगी हुई थी। बादलों के धुंधलके में से लगातार टप-टप बूंदें बरस रही थीं और कुहरे ने संध्या के खिले मुखड़े पर अपनी कालिमा का आवरण डालना आरम्भ कर दिया था।

अंजना इस भीगे मौसम में एक प्राइवेट टैक्सी में बैठी पूनम की ससुराल जा रही थी। अपने जीवन में वह पहली बार नैनीताल जा रही थी। नई जगह, नये लोग, अनजाना वातावरण और-और एक अनोखी जिन्दगी! इन सब बातों को सोचकर उसका दिल बैठा जा रहा था लेकिन न जाने कौन-सा आकर्षण था जो उसे इस नई मंजिल की ओर लिए जा रहा था।

कोलतार की भीगी हुई सड़क पर जब कभी टैक्सी का पहिया किसी गढ़े पर उछलता तो वह अपनी तन्मयता से हड़बड़ा-सी जाती और राजीव को अपनी बांहों में कस लेती। उसकी कल्पनाएं उन बादलों की तरह ही थोड़ी देर के लिए बिखर जातीं।

राजीव को सरदी से बचाने के लिए उसने उसे अपने गरम दुशाले से अच्छी तरह ढक लिया और टैक्सी ड्राइवर से पूछा, ''अभी कितना रास्ता और है भाई?''

''बस सत्रह-अठारह मील, मेम साहिबा!''

''अंधेरा होने से पहले पहुंचा दोगे ना?''

''अगर अल्लाह ने चाहा।''

वह चुप हो गई और फिर से अपने-आपमें खो गई।

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