ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
मंज़िल
मंजिल है, हदें सरहदें भी हैं,
और कुछ है तो वह है,
उसकी दहलीज पर सजदे करना,
और बिना रुके चलते जाना।
रास्ते बड़े अदब से तशरीफ़ रखते हैं यहाँ,
चलते चलते यहाँ
आखिरी मंजिल तक पहुँचते हैं,
हदें सरहदें पार कर,
जहाँ को नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर देते हैं।
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