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कलंकिनी

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9584

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यह स्त्री नहीं, औरत के रूप में नागिन है…समाज के माथे पर कलंक है।


रात के बारह बज चुके थे, किन्तु वर्षा भयंकर रूप से तांडव किए जा रही थी। पानी से जल-थल सड़क बिजली की रोशनी में यों प्रतीत हो रही थी मानो दूर तक पिघली हुई चांदी बिछी हो।

नीरा ईरोज सिनेमा की सीढ़ियों पर खड़ी व्याकुलता से अंकल की प्रतीक्षा कर रही थी। वह अभी तक क्लब से न लौटे थे, दर्शक धीरे-धीरे घरों को जा चुके थे। अब कोई इक्का-दुक्का व्यक्ति ही सिनेमा के बरामदे में रह गया होगा। नीरा की दृष्टि बार-बार दूर तक सड़क को नापती, किन्तु व्यर्थ। अंकल की कार का कहीं कोई चिन्ह न था।

देखते-देखते सिनेमा के हॉल की बत्तियां बुझ गईं। नीरा ने पलटकर देखा, चौकीदार शीशे वाला मुख्य द्वार बंद कर रहा था। नीरा सिमटकर दीवार से लगकर खड़ी हो गई। अब वह अकेली ही वहां रह गई थी, उसे पाली हिल बांद्रा तक जाना था और इतनी रात गए अकेले टैक्सी में जाने का उसे साहस न हो रहा था।

अचानक उसे लोकल ट्रेन का ध्यान और बिना अंकल की प्रतीक्षा किए वह चर्चगेट स्टेशन की ओर चल पड़ी। आज हठ करके अंकल की इच्छा के विरुद्ध सिनेमा देखने आई थी, पिक्चर का अन्तिम शो था और वह इसे अवश्य देखना चाहती थी। यह मैंने अच्छा नहीं किया। बादल तो पहले ही छा रहे थे… अकेले में रात के शो पर मुझे नहीं आना चाहिये था… पर अंकल क्यों नहीं पहुंचे… अभी तक तो उसे अंकल पर क्रोध आ रहा था। स्टेशन के भीतर आकर उसने शीघ्र ही फर्स्ट क्लास का टिकट लिया और गाड़ी की ओर लपकी। महिलाओं का डिब्बा खाली था। नीरा को इस खाली डिब्बे में बैठने से कुछ भय लगा और वह झट साथ वाले पुरुषों के डिब्बे में जा बैठी।

उसके भीतर आते ही गाड़ी चल पड़ी। सिनेमा हॉल से स्टेशन तक आते हुए वह खासी भीग गई थी, उसने भीगे केशों में से पानी निचोड़ा और गीले कपड़ों को हवा देने लगी। प्लेटफार्म छोड़ते ही गाड़ी की गति तेज हो गई थी। ओढ़नी को सूखने के लिए फैलाकर उसने पहली बार ध्यानपूर्वक डिब्बे का निरीक्षण किया और विस्मय से रह गई, डिब्बे में एक ही पुरुष था? महिलाओं के खाली डिब्बे को छोड़कर इस डिब्बे में प्रवेश करते समय नीरा ने सोचा था इसमें दो-चार व्यक्ति तो होंगे ही। शीघ्रता में उसे इतना समय ही नहीं मिला कि वह भीतर झांककर पहले तसल्ली कर ले। रात के समय एक युवा का बिल्कुल अकेले यात्रा करना भय से रहित न था, किन्तु इस स्थिति में कोने वाली सीट पर बैठे एक युवक को देखकर अन्नायास ही उसका दिल भय से धड़कने लगा।

वह युवक आरामपूर्वक खिड़की से लगा बाहर का दृश्य देख रहा था। क्षण भर उसने दृष्टि झुकाकर नीरा को प्रवेश करते देखा था, किन्तु–फिर बाहर वर्षा को देखने में व्यस्त हो गया था।

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