लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> काँच की चूड़ियाँ

काँच की चूड़ियाँ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9585

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

241 पाठक हैं

एक सदाबहार रोमांटिक उपन्यास

''एक विवश, लाचार लडकी...गरीबी की मारी... दो नन्हें बच्चों के साथ रास्ते में भीग रही थी... उसका नन्हा भाई ज्वर में जल रहा है...''

''तो...''

''मैं उसे देखता हूं... शायद शीत लग गयी है बेचारे को... तुम शीघ्र थोडा पानी गर्म कर लाओ।''

पत्नी को आदेश देकर डाक्टर बड़े कमरे में लौट आया। रूपा ने उठकर शीघ्र पानी गर्म किया और चिलमची में लेकर पर्दा हटा कर कमरे में आई। एकाएक विस्मय से उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। यह उसकी कल्पना में भी न आ सकता था कि इस समय, इस स्थिति में उसके घर आने वाली लड़की उसी की प्रिय सखी गंगा होगी। दृष्टि मिलते ही दोनों की आंखों में पानी भर आया। रूपा ने झट गर्म पानी की चिलमची मेज पर रखी और गंगा से लिपट गई, फिर सखी से अलग होकर पति से पूछने लगी- ''कैसी तबीयत है शरत् की?''

''सर्दी लग गई है। तुम शीघ्र रबर की थैली में गर्म पानी डालो, मैं इन्जेक्शन तैयार करता हूँ।''

''कोई...''

''घबराने की कोई बात नहीं, सब ठीक जायेगा; और हां, बच्चों के लिए बिस्तर लगा दो।''

गंगा ने रूपा के हाथ से गर्म पानी की थैली ले ली। रूपा बिस्तर लगाने भीतर चली गई। गंगा शरत् के पास आ खडी हुई। डाक्टर ने उसे सांत्वना दी और बच्चे को इन्जेक्शन देकर गर्म कपड़े से ढक दिया। रात को करीब तीन बजे शरत् को होश आया और उसने पुकारा- ''दीदी!''

जीवन ने देखा, उसका बुखार कम हो रहा था। पति और पत्नी दोनों अभी तक उसके पास बैठे हुए थे। गंगा ने दोनों को आराम करने को कहा। जीवन तो कुछ आवश्यक निर्देश देकर चला गया किन्तु रूपा वहीं सखी के पास बैठी रही।

इधर प्रात: सूर्योदय हुआ, उधर शरत् का बुखार उतर गया। गंगा ने कृतज्ञता प्रकट करने के पश्चात् जाने की आज्ञा चाही।

डाक्टर जीवन ने यह कहकर उसकी बात काट दी, ''आपको ऐसा कहना शोभा नहीं देता। यह तो मेरा कर्त्तव्य था और फिर यह घर भी तो आपका है।''

रूपा ने गंगा से पूछा, ''बहन, कहां जाओगी?''

''जहां भाग्य ले जायेगा... ''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book