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मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे

66. मेरे गीत चले आओ ना

 

मेरे गीत चले आओ ना फिर तुमको बाँहों में भर लूँ।
अर्थ सँजो लूँ अंतरतम में, शब्द-शब्द अधरों पर धर लूँ।।

जब भी तुम मिलते हो मुझसे
मैं कितना मुखरित हो जाता।
मेरे मन की वीणा का फिर
तार-तार झंकृत हो जाता।
मेरे गीत चले आओ ना फिर वीणा में सुमधुर स्वर लूँ।
मेरे गीत चले आओ ना फिर तुमको बाँहों में भर लूँ।।

जब-जब भी मैं देखूँ तुमको
रूप मुझे मेरा दिख जाये।
जैसे कोई दर्पण देखे
उसमें अपनी ही छवि पाये।
मेरे गीत चले आओ ना फिर मैं सज लूँ और सँवर लूँ।
मेरे गीत चले आओ ना फिर तुमको बाँहों में भर लूँ।।

कब से राह निहार रहा हूँ
क्या तुमको इसकी सुधि आई।
बिना तुम्हारे इस जीवन में
है कितनी नीरसता छाई।
मेरे गीत चले आओ ना फिर जीवन को रसमय कर लूँ।
मेरे गीत चले आओ ना फिर तुमको बाँहों में भर लूँ।।

 

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