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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


109. आज जहाँ कहीं भी देखें


आज जहाँ कहीं भी देखें
नारी का जीवन सुरक्षित नहीं
कहीं मार देते गर्भ में
कहीं वासना का शिकार हुई

औरत की इज्जत का बचना
कहाँ अब सुरक्षित रहा।

कहाँ आज मैं सुरक्षित हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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