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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


1. मैं तो जन्म से मृत्युपर्यन्त


मैं तो जन्म से मृत्युपर्यन्त
जीवन रूपी अथाह सागर में
लहरों पर तैरती, डूबती
पार करने की सोचती।

डरती हूँ मैं नारी से ही
जबकि खुद मैं हूँ नारी

मैं अभागिन बेचारी हूँ,
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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