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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


गरिमा ने कहा, ‘‘इच्छा तो यह है कि आपके साथ ही चलूँ। मौसी, यहाँ आ दीदी के साथ रहना चाहती हैं और प्रसव काल के एक मास पूर्व उसे विलासपुर में ले जायेंगी।

‘‘यदि आपके साथ चल सकती तो मौसीजी जो जल्दी आने के लिये लिख देती।’’

‘‘बात यह है कि लन्दन अथवा किसी भी नगर से दूर रहना पड़ेगा। वहाँ बैरक्स में तुम्हें ले जाकर रखूँगा तो तुम्हें कष्ट होगा और फिर ‘हेड क्वार्टर’ से दूर भी जाना पड़ा करेगा।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि दीदी को बिलासपुर ले जाने के स्थान यहाँ ही किसी हस्पताल में प्रसव का प्रबन्ध करो तो ठीक है।’’

‘‘तब तो मेरा यहाँ रहना सार्थक हो जायेगा।’’

‘‘मैं चाहता हूँ कि तब तक मैं बाबा की शेष कथा भी पढ़ डालूँ।’’

‘‘परन्तु आपको समय भी तो मिले?’’

‘‘बात यह है कि इस पाकिस्तान के युद्ध के उपरान्त हमें अपनी सुरक्षा-सम्बन्धी बहुत-सी त्रुटियों का ज्ञान हो गया है और उसके लिये रात को उड़ान और बम्बबाजी तथा रात के समय हवाई जहाजों पर गोलाबारी के अभ्यास अधिक हो गये हैं। सप्ताह में एक-आध दिन ही तो समय पर घर आ पढ़ सकता हूँ।’’

‘‘तो आप आशा कर रहे हैं कि पुनः युद्ध होगा?’’

‘‘ताशकन्द के समझौते से दोनो पक्ष असन्तुष्ट हैं। इससे युद्ध अवश्यम्भावी है।’’

‘‘यदि अब पाकिस्तान से युद्ध हुआ तो अधिक भयंकर होगा।’’

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