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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘यह बात तो बाबा की कथा में लिखी है कि यदि रावण के लंका में आते ही उसको बन्दी बना लिया जाता तो पीछे देवलोक में हुए अपार हत्यायें न होतीं। कुबेर को ही चाहिये था कि उस समय रावण के निवास-स्थान पर सैनिक भेज एकत्रित भीड़ को तितर-बितर करा देता।

‘‘परन्तु यह भी वहाँ लिखा है कि सैनिक सब-के-सब राक्षस थे। साथ ही राक्षस सेना तो अपने भाई-बन्धुओं पर आक्रमण करने के स्थान कुबेर को ही पकड़ लेती।

‘‘अर्थात् सेना से अपने भक्तों को ही भरती करना चाहिये। जिस देश में दो जातियों के लोग बसते हों वहाँ अपने से अन्य जाति के लोग सेना मे भरती नहीं करने चाहियें।’’

‘‘आजकल तो यह बात प्रसिद्ध हो चुकी है। अंग्रेजी काल में अंग्रेजी सेना में हिन्दू और मुसलमान दोनों सरकार के प्रति निष्ठा और भक्ति रखते थे और प्रायः अंग्रेजी सिपाहियों से अधिक बहादुरी से लड़ते थे।’’

‘‘देखो गरिमा!’’ कुलवन्त ने अपने मन की बात बता दी, ‘‘हिन्दुस्तान में चिरकाल से राज्य की भक्ति का विचार प्रचलित है। कदाचित् यह विचार हिन्दू काल से ही चला आता है। तब राजा और प्रजा सजातीय होते थे।

‘‘यही प्रथा मुसलमानी काल में भी चली आयी थी। पठारों और मुगलों के हिन्दू सिपाही भी जी-जान से लड़ते थे।

‘‘यह तो मुसलमानों की प्रथा है कि यह गैर मुसलमान राजाओं के प्रति बफादार नहीं होते। इस पर भी हिन्दूस्तानियों के रक्त में राजा की भक्ति परमात्मा की भक्ति के समान समझी जाती है।

‘‘अंग्रेजी राज्य में जब राजा ने हिन्दुस्तानियों से घृणा करना आरम्भ की और उनके साथ दुर्व्यवहार करना आरम्भ किया तो हिन्दुस्तानियों में आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न होने लगी।

‘‘प्रथम और द्वितीय विश्व-व्यापी युद्धों में हिन्दुस्तानी सिपाही अंग्रेजों से अधिक शौर्य का प्रदर्शन करते रहे, परन्तु अंग्रेज अफसर उनसे घृणा करते हुए उनको अपने से छोटा समझते रहे। परिणाम-स्वरूप सेना में इसकी प्रतिक्रिया हुई।

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