उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘हाँ।’’ नारद ने कह दिया, ‘‘मैंने ऐसा ही सुना है और मैं आपकी सहायता के लिये आया हूँ।’’
‘‘आज्ञा करिये। मैं आपका अत्यन्त आभारी रहूँगा।’’
‘‘देखो, ऋषिवर! तुम्हें कोई क्षत्रिय कुमार चाहिये जो तुम्हारे शस्त्रों का प्रयोग कर सके और फिर इस वन को राक्षसों से मुक्त करा सके।’’
‘‘यह तो ठीक है। परन्तु मुझे भय है कि वह मेरे अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग सीखकर भले लोगों को ही कष्ट देना आरम्भ न कर दे।’’
‘‘ऋषिवर! कोशल राज्य की राजधानी अयोध्या में राजा दशरथ का बड़ा पुत्र राम और उसका छोटा भाई लक्ष्मण बीस-इक्कीस वर्ष के युवक हैं। बहुत श्रेष्ठ स्वभाव रखते हैं। उनको तुम राजा दशरथ से माँग लाओ और उनको शिक्षा देकर तैयार करो। वे तुम्हारे यज्ञ के निर्विघ्न होने में सहायक हो जायेंगे। वे धर्मात्मा राजा के पुत्र धर्म की रक्षा करेंगे।’’
‘‘परन्तु महाराज दशरथ अपने पुत्रों को यहाँ इस भयंकर वन में भेजना पसन्द नहीं करेगे।’’
इसका प्रबन्ध मैं कर दूँगा। तुम राजा के पुरोहित वशिष्ठजी के सामने राजकुमारों को यज्ञ की रक्षा के लिये माँग लेना। महर्षि वशिष्ठ तुम्हारी सहायता कर देंगे। पुरोहित की बात राजा टाल नहीं सकेगा।’’
इस प्रकार योजना बन गयी। उसी दिन विश्वासमित्र अयोध्या के लिये चल पड़ा।
उस दिन बाबा की कथा पर भृगुदत्त ने कह दिया, ‘‘परन्तु बाबा! कुछ एक लेखकों ने यह विख्यात किया है कि राम श्रृगी ऋषि के कौशल्या से नियोग की सन्तान है?’’
बाबा ने कहा–‘‘ऐसा किसी प्रामाणिक ग्रन्थ में लिखा नहीं मिलता। यदि यह बात होती तो महर्षि वाल्मीकि इस बात को लिख देने में संकोच न करते। प्राचीन काल में शिष्ट परिवारों में नियोग की प्रथा प्रचलित थी।
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