उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘इससे पुरुष से समागम केवल सन्तान के लिये ही किया गया था। वासना-तृप्ति के लिये नहीं। सन्तान होने पर पुरुष-स्त्री का सम्पर्क छूट जाता था।
‘‘धृतराष्ट्र इत्यादि और पाण्डवों का नियोग की सन्तान होना निन्दा की बात नहीं मानी जाती थी। यदि राम भी ऐसी सन्तान होता तो बाल्मीकि इसे छुपाते नहीं। यह लज्जा की बात नहीं मानी जाती थी।’’
‘‘परन्तु आजकल तो इसे ठीक नहीं माना जाता?’’
‘‘हाँ। यह प्रथा है। आर्यों ने इसको जारी रखना उचित नहीं समझा। आजकल इसे वर्जित माना गया है।’’
‘‘यह क्यों?’’
‘‘निश्चय से तो इसका कारण नहीं बता सकता। इस पर भी हिन्दू-समाज के धर्म-शास्त्रियों ने इस प्रथा का दुरुपयोग होते देखा होगा तो इसे बदल दिया होगा। आज उसके स्थान पर विधवा-विवाह स्वीकार कर लिया गया है।’’
‘‘तो विवाह की प्रथा धर्म का अंग नहीं है?’’
‘‘है। परन्तु विवाह करना अथवा न करना, एक करना अथवा दो या अधिक विवाह करना, ये धर्म हैं जो देश, काल, अवस्था इत्यादि के साथ बदले जा सकते हैं। इनके बदलने से सनातन धर्मों से अन्तर नहीं पड़ता।’’
‘‘तो राम नियोग की सन्तान नहीं था?’’
‘‘कुछ बौद्ध और नास्तिक लेखकों ने प्राचीन आर्यों को बदनाम करने के लिये इस प्रकार की निराधार बात को लिख दिया है। मैं तो यह कहता हूँ कि राम-कथा जैसी बाल्मीकि ने लिखी है, उसमें यह नहीं लिखा। इस पर भी राम दशरथ का पुत्र था अथवा महर्षि श्रृंगी का, इससे वह राम से कुछ अन्य नहीं हो जाता।
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