उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘नही मेघनाथ! देवताओं और आर्य राजाओं के इकट्ठे हो जाने पर हम विजयी नहीं हो सकेंगे। तुम्हारी माया इन आर्यों पर चल नहीं सकेगी। वह तुमसे अधिक मायावी है।’’
‘‘परन्तु पिताजी! हमें कुछ तो करना चाहिये। यदि हमने कोई समर नहीं चलायी तो हमारे सिपाही भी देवताओं के सैनिकों की भाँति भीरु, दुर्बल और प्रमादी हो जायेंगे।’’
‘‘देखो, मैंने मारीच के साथ आते हुए मार्ग में एक योजना बनायी है। हमें अपने राज्य की अग्रिम चौकियाँ विन्ध्याचल के साथ-साथ बना लेनी चाहियें और उनके द्वारा धर्म का प्रचार करना चाहिये कि वीरों के भोग के लिए पृथ्वी की सब विभूतियों का भोग प्रस्तुत करना चाहिये। आज से हमारे राज्य की उत्तरी सीमा नर्मदा होगी और हमारे सैनिक युद्ध के अभ्यास के लिये सीमा पार के क्षेत्रों में जाया करेंगे।
‘‘हम अपने निययानुसार दुर्बल मानवों को अपना भोजन बनायेंगे। इससे वे लोग स्वयं भाग-भाग कर उत्तर की ओर हटते जायेंगे।
‘‘कोई बड़ा युद्ध अथवा आक्रमण नहीं होगा। अतः लंका राज्य कर विन्ध्याचल पर्वत से भगाना आरम्भ कर देंगे। जब कोई क्षेत्र जनशून्य हो जायेगा तो हम उस पर अपना अधिकार कर लेंगे।
‘‘मारीच ने बताया है कि उसके साथियों ने दो बहुत बड़े क्षेत्र मलद और कारुष जन-शून्य कर दिये।
‘‘एक समय था कि मलद और कारुष बहुत ही सम्पन्न जनपद थे। उनकी माता ताड़का एक तपस्वी सुकेतु की लड़की है। वह अतुल बल की स्वामिनी है। जब वह सज्ञान हुई तो उसका विवाह जम्भ के पुत्र सुन्द से कर दिया गया। इस विवाह से ही मारीच का जन्म हुआ है। ताड़का और सुन्द एक बार अगस्त्य ऋषि के आश्रम में पहुँचे तो वहाँ आश्रम में पशुओं को मार-मार कर खाने लगे। इस पर अगस्त्य ने उन्हें मना किया परन्तु ये नहीं माने। अगस्त्य ने सुन्द को मार डाला। पिता के मरने पर मारीच और उसकी माँ वहाँ ऋषियों को मार-मार कर खाने लगे।
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