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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

5

जब मेघनाथ अपनी सेना को ले देवलोक से वापस लंका में पहुँचा तो अपने पिता और पुष्पक विमान को वहाँ न पहुँचा देख बहुत परेशानी अनुभव करने लगा। उसने यह पता करने के लिये कि उसका पिता कहाँ रह गया है, अपने दूत चारों ओर भेजे।

दूत उस मार्ग पर देखते हुए देवलोक की ओर चल पड़े, जिधर से मेघनाथ के पिता के आने का कार्यकम था। वे दूत जब विन्ध्याचल क्षेत्र में पहुँचे तो उनको रावण अपने पुष्पक विमान को ठीक करते हुए मिल गया।

पुष्पक विमान में जल भर जाने से वह नाकारा हो गया था। उसे पुनः ठीक करने में समय लगा। जब दूतों ने राजा रावण से मिलकर अपने आने का कारण बताया तो रावण ने उन दूतों को भी साथ ले लिया और विमान के ठीक होते ही सब साथियों सहित लंका में जा पहुँचा।

वहाँ रावण ने अपने अपमान और रोष का वर्णन किया तो मेघनाथ राजा अर्जुन से बदला लेने के लिये विन्ध्य प्रदेश पर आक्रमण कर देने का विचार करने लगा, परन्तु रावण ने बताया कि उसके पिता ने उसकी अर्जुन से संधि करा दी और उस संधि से वह उसके देश पर आक्रमण करने की स्वीकृति नहीं दे सकता। इस पर भी मेघनाथ ने कहा, ‘‘पिताजी! मैं तो आपकी संधि का पाबन्द नहीं हो सकता।’’

‘‘परन्तु जब तुम अपना पृथक् राज्य बना लो और लंका से सदा के लिये सम्बन्ध-विच्छेद कर लो, तब ही तुम ऐसा कर सकते हो। उस अवस्था में मेरी संधियां प्रतिष्ठित रहेंगी।

‘‘और यदि तुमने यहाँ रहते हुए लंका की सेना द्वारा किसी देश पर आक्रमण किया तो देवता लोग मुझे अविश्वास के योग्य मान मुझ पर आक्रमण कर देंगे। यह ठीक नहीं होगा।’’

‘‘परन्तु पिताजी।’’ मेघनाथ ने पूछ लिया, ‘‘यह ठीक क्यों नहीं होगा? हम पुनः देवताओं को परास्त कर सकेंगे।’’

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