उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
तट पर भ्रमण करते हुए रावण ने एकान्त स्थान पर बाली को ध्यानावस्थित बैठे देखा। इसे एक ईश्वर-प्रदत्त अवसर मान रावण ने बाली को पकड़ कर लंका में ले जाने की योजना बना ली। उसने अपना विमान जिस पर वह भ्रमण कर रहा था, बाली के तपस्या स्थान से कुछ अन्तर पर उतारा और वहाँ से पैदल उस स्थान को चल पड़ा जहाँ बाली तपस्या में लीन बैठा था।
बाली अभी भी चिन्तन कर रहा था और रावण धीरे-धीरे बिना आवाज किये बाली की ओर जाने लगा। परन्तु बाली ने उसे देख लिया था और उसे चोरी-चोरी अपनी ओर आते देखा तो उसे सन्देह हो गया कि यह व्यक्ति किसी प्रकार की कुटिलता करना चाहता है। बाली आने वाले व्यक्ति की नीयत पर तो सन्देह कर रहा था, परन्तु नहीं जानता था कि वह क्या करना चाहता है। इससे आने वाले व्यक्ति को दबे-पाँव अपनी ओर आते देख बाली आधी मूँदी आँखों से उसे देखता रहा।
रावण बाली के समीप पहुँच उसके पीछे हो लपक कर उसको बाँध लेना चाहता था। बाली ने जब उसे अपने हाथ की पहुँच के भीतर आया जाना तो उसने एकाएक घूमकर रावण को पकड़ कर अपनी बगल में दबा लिया।
रावण कुछ काल तक छूटने के लिये छटपटाता रहा, परन्तु बाली उससे अधिक शक्तिशाली सिद्ध हुआ। वह उसे पकड़ कर अपने राज्य की राजधानी किष्किन्धा नगरी में ले गया। वहाँ उसे बन्दी बनाकर रख लिया।
एक दिन बाली रावण के पास पहुँचा। वह जानना चाहता था कि वह कौन है और क्यों घूमकर उसके पीछे हो गया था। बाली उस कोठरी के बाहर पहुँचा जहाँ रावण बन्दी बना रखा हुआ था।
रावण से उसने पूछा, ‘‘तुम कौन हो?’’
‘‘मैं लंकापति रावण हूँ।’’
बाली हँस पड़ा। वह हँसकर बोला, ‘‘पर इसका प्रमाण क्या है?’’
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