उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘हाँ। ऋषि-मुनि किसी की हत्या नहीं करते और न ही किसी को कोई दण्ड देते हैं। वे शाप ही देते हैं। शाप का अभिप्राय यह है कि वे किसी पापी के पाप का दण्ड सुना देते हैं और उस दण्ड का पालन इन्द्र कराता है।
‘‘यही बात मारीच से हुई। मारीच को देवलोक से निकाल दिये जाने का दण्ड हो गया। यह ऋषि का वचन इन्द्र को बताया गया तो इन्द्र ने अपने गण भेज मारीच को देवलोक से बाहर कर दिया।
‘‘मारीच को देवलोक से निकाला गया तो उसकी माँ ताटका को अति दुःख हुआ। उसने अपने पति को कहा कि इस ऋषि से यह दण्ड वापस करवाइये।
‘‘सुन्द मुनिजी के पास पहुँचा तो अगस्त्यजी माने नहीं। इस पर सुन्द ने मुनिजी को खा जाने की धमकी दी तो मुनिजी ने उसे मृत्यु दण्ड का शाप दे दिया।
‘‘वह इन्द्र की आज्ञा से मृत्यु-दण्ड पा गया। इस पर तो ताटका क्रोध से भर गयी और उसने अगस्त्य आश्रम को उजाड़ना और वहाँ के प्राणियों को खाना आरम्भ कर दिया।
‘‘इस कारण ताटका को भी देवलोक से निकाल देने का शाप दे दिया गया। मारीच इसी वन में रहता था। ताटका भी यहाँ आ गयी और दोनों यहाँ सब प्रकार के उपद्रव करते रहते हैं।’’
जब राम और लक्ष्मण इस वन में से गुजर रहे थे कि ताटका से साक्षात्कार हो गया। वह स्त्री अति भयंकर रूप वाली थी। साथ ही वह युद्ध करना भी जानती थी। वह राम को पकड़ मार खा जाने के विचार से लपकी। राम को महर्षि विश्वामित्र ने सचेत कर रखा था। अतः राम ने उसे देखते ही घनुष पर बाण चढ़ाया और राक्षसी की बाहें काट दीं। इस पर भी वह अमर्ष से भरी हुई राम को खा जाने को दौड़ी तो राम ने उस पर बाण-वर्षा कर उसे मार डाला।
उसके मर जाने पर राम ने महर्षि से पूछ लिया, ‘‘भगवन्! यह देवकन्या तो प्रतीत नहीं होती थी। इसका रूप तो अति विकराल था। आपने कहा था कि यह एक सुन्दर देवकन्या थी।’’
‘‘हाँ, परन्तु जब सुन्दर-से-सुन्दर व्यक्ति भी चिरकाल तक क्रूर कर्म करता रहे तो उसका रूप विकृत हो जाता है। नर-माँस खाने से भी आकृति में विकरालपन उत्पन्न होने लगता है।
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