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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

7

‘‘राम!’’ महर्षि विश्वामित्र ने कहा, ‘‘सिद्धाश्रम के मार्ग में एक ताटका वन है। उस वन का यह नाम एक ताटका नाम की असुर स्त्री के कारण पड़ा है। वह स्त्री अति भंयकर योद्धा और नर-माँस खाती है। अतः इस वन में कोई भी मनुष्य आ जाये तो वह उसे मारकर उसका माँस खा जाती है।’’

‘‘गुरुजी!’’ राम ने पूछा, ‘यह किसकी लड़की और किसकी पत्नी है?’’

‘‘वह एक सुकेतु नाम के यक्ष की लड़की है। बहुत तपस्या के उपरान्त उसके घर यह लड़की उत्पन्न हुई थी। यह अति सुन्दर देवकन्या समान थी। यक्ष देवलोक के निवासी हैं। दुर्घटना यह हुई कि उसका विवाह एक सुन्द नाम के व्यक्ति से हो गया। सुन्द स्त्री पर इतना मुग्ध हुआ कि वह सदा उसकी आज्ञानुसार काम करता था।

‘‘ताटका और सुन्द की सन्तान एक दुर्जय बली पुत्र हुआ। वह मारीच है। मारीच माँसाहारी हो गया। इससे वह जहाँ कहीं भी वन-पशु मिलते, उनको मार कर खा जाता।

‘‘एक बार वह अगस्त्य ऋषि के आश्रम पर बहुत से मृगों को स्वेच्छा से विचरण करते देख उनका माँस खाने की लालसा करता हुआ उस आश्रम के पास ही रह गया। वह नित्य आश्रम के मृगों को मार-मार कर खाने लगा।

‘‘ऋषि ने उसे मना किया, परन्तु वह नहीं माना। इस कारण महर्षि ने मारीच को शाप दे दिया।’’

‘‘क्या शाप दिया?’’ राम ने पूछ लिया।

‘‘उसको देश-निष्कासन की सिफारिश कर दी और इन्द्र ने महर्षि के कथन का पालन करते हुए मारीच को देवलोक से निकल जाने की आज्ञा दे दी।’’

‘‘लो यह शाप कहा जाता है?’’

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