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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘इस प्रकार पूर्ण विन्ध्याचल प्रदेश के गाँव उजड़ रहे हैं। लोग अपने घरों को छोड़-छोड़ भाग रहे हैं और जब कोई गाँव अथवा नगर जनशून्य हो जाता है तब ये लोग वहाँ वन बना, पशुओं को एकत्रित कर देते हैं। इस प्रकार वे अपना खाने-पीने का प्रबन्ध करते हैं। साथ ही इस प्रकार वनों को धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ा रहे हैं।

‘‘इस वन को भी रावण के राक्षसों ने उजाड़ा है और अब हमें भी खदेड़ देने के उपरान्त निश्चिन्त हो वन-पशुओं के मांस से अपना निर्वाह करना चाहते हैं। यह है इनके मन में हमारे प्रति व्यवहार का कारण।’’

मारीच को जब अपनी माँ के मारे जाने की सूचना मिली तो वह अपने साथियों के साथ इस वन में आ धमका। वह एक कुशल योद्धा हैं तो वह उनसे युद्ध करने चला आया।

घोर युद्ध हुआ। दोनों ओर से डटकर मुकाबला हुआ। अत्यधिक राक्षसों का हनन हुआ और मारीच घायल हुआ तो उसके साथी उसे उठाकर ले गये।

इस प्रकार यज्ञ में विघ्न डालने वाले भागने लगे और यज्ञ चलता गया। विश्वामित्र का यज्ञ एक प्रकार से रावण के विरुद्ध युद्ध के लिये राम को तैयार करना था। विश्वामित्र के पास कई प्रकार के दिव्यास्त्र थे। उनकी शिक्षा राम को मिलने लगी।

राम एक वर्ष से ऊपर ऋषि-आश्रम में रहा। वहाँ रहते हुए उसने न केवल यज्ञ की रक्षा की, वरंच उसने राक्षसों से युद्ध का ढंग सीखा। उसने अनेकानेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों के प्रयोग का ढंग सीखा और फिर राक्षसों से वास्तविक संघर्ष का मूल कारण भी जाना।

एक दिन ऋषि विश्वामित्र ने बताया, ‘‘आदि सृष्टि से दो प्रकार की प्रवृत्तियों के मनुष्यों का जन्म हो रहा है। एक देवता हैं और दूसरे असुर हैं। देवता स्वभाव के लोग अपना जीवन यज्ञ-रूप चलाते हैं। अर्थात् वे अपने अर्जित धन-सम्पद में से केवल अपने निर्वाह के लिये रखकर शेष लोक-कल्याण में व्यय कर देते हैं। उनके जीवन के सब काम निस्पृह अनासक्त भाव से होते हैं। इसके विपरीत आसुरी स्वभाव के लोग अपने पूर्ण जीवन के प्रयत्न को अपने भोग-विलास पर ही व्यय करते हैं।

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