लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


इस कारण कुलवन्त ने वहाँ अपने होने की बात बता दी। उसने बताया, ‘‘हम हिन्दुस्तानी अधिकारियों को यहाँ आये चार महीने हो चुके हैं और इन चार महीनों में मैं लन्दन में छः-सात बार आ चुका हूँ।’’

‘‘इस होटल वाले आपको जानते प्रतीत होते हैं?’’

‘‘हाँ। मैं प्रायः इसी होटल में ठहरा करता हूँ। यह न बहुत महँगा है और न ही गन्दा।’’

मिस्टर इरविन सूसन से बातें कर रही थी। उसने ऐमिली इरविन को बताया, ‘‘मेरे पापा लन्दन में रहते हैं। वह पैंशन पाते हैं। मम्मी एक फ्रांसीसी स्त्री थी। वह मेरे लिये एक अच्छी-खासी सम्पत्ति छोड़ गयी है। मैं लियौन में रहती हूँ।’’

‘‘तो तुमने इस हिन्दुस्तानी से विवाह कर लिया है?’’

‘‘हाँ। मैं कराची घूमने गयी थी। वहाँ यह मिल गया और मैंने इससे विवाह कर लिया। अब इसे अपने साथ रहने के लिये फ्रांस में ले आयी हूँ।’’

‘‘तो यह पाकिस्तानी है?’’

‘‘हाँ, मगर हिन्दू है। वहाँ मुसलमान बन कर रहता था।’’

‘‘कोई जासूस था क्या?’’

‘‘नहीं। मगर इसका इतिहास इसके मित्र से ही पता करियेगा।

मैं बताने का अधिकार नहीं रखती।’’

इस पर ऐमिली ने बात बदल दी। दूसरी ओर अमृत कुलवन्त को ऐमिली का परिचय दे रहा था। वह बता रहा था, ‘‘यह लियौन में रहती है। मैं इसका पति होने के नाते वहाँ ही रह रहा हूँ। ‘फ्रेंच एयर लाइन्स’ में मैंने नौकरी के लिये प्रार्थना-पत्र दिया हुआ है। वे अगले सप्ताह मेरा टैस्ट ले रहे हैं।’’

‘‘परन्तु तुम फ्रांस लियौन में पहुँचे कैसे?’’

‘‘मैं आपको रात खाने के उपरान्त बताऊँगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book