उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘और तब तक कहीं लापता हो गये तो?’’
‘‘जीजाजी से लापता नहीं हूँगा। हाँ, भारतीय सैनिक अधिकारी से बचना चाहता हूँ।’’
इससे कुलवन्त गम्भीर विचार में मग्न हो गया। वे टैक्सी के समीप जा पहुँचे थे। कुलवन्त ने मिस्टर फ्रिट्स से कहा, ‘‘इरविन डीयर! सौभाग्य से मैं इनको पा गया हूँ। मुझे ध्यान हो आया था कि कहीं ये अपने ‘लगेज’ छुड़ाने के लिये पीछे न रह गये हों। इसी कारण मैं पुनः इनको देखने जा रहा था कि ये द्वार पर ही मिल गये।
‘‘ये हमारे साथ रात का खाना खायेंगे। अतः मैंने रात होटल में ठहरने का विचार कर लिया है। इनसे बहुत बातें करनी हैं। कल पुस्तकालय में जाने के कारण समय नहीं होगा।’’
‘‘तो फिर हम कब मिलेंगे?’’
‘‘मैं अभी तो तुम्हारे साथ मिसेज इरविन से ‘रिसपैक्ट पे’ करने चल रहा हूँ। वहाँ से ‘सोहो स्क्वेयर’ में मैट्रोपोलिटन मे खाना खाऊँगा और वहाँ ही ठहरने का प्रबन्ध करना चाहूँगा।
‘‘आप और मिसेज इरविन अर्थो सहित मेरे साथ खाना खायें तो मैं आभारी रहूँगा।’’
इरविन ने स्वीकार किया तो कुलवन्त ने उस स्त्री का और अमृत का परिचय करा दिया।
चारों व्यक्ति टैक्सी में सवार हो किंग्स रोड पर पहुँचे। वहाँ मिसेज इरविन और उसके बच्चों को साथ ले वे अब दो टैक्सियों में सोहो स्क्वेयर में मैट्रोलोलिटन होटल और रैस्टोराँ में जा पहुँचे।
अमृतलाल ने देखा कि कुलवन्त लन्दन से भली-भाँति परिचित है और वह मैट्रोपोलिटन रँस्टोराँ में पहुँचा तो उसके रात रहने का प्रबन्ध भी वहाँ सुगमता से हो गया।
अभी रात के सात बजे थे। खाने को अभी दो घण्टे का समय था। इस कारण सब एक-एक प्याला चाय ले होटल के रिसैप्सन रूम’ में जा बैठे। कुलवन्त ने अमृत को बता दिया था कि वह उसकी गुप्त बात को रात के खाने के उपरान्त अपने कमरे के एकान्त में सुनेगा।
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