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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘आओ, मेरे साथ। मैं तुम्हें ‘सोहो स्केवेयर’ के ही एक रैस्टोराँ में ले चलता हूँ। हम वहाँ खाना खायेंगे और फिर तुम्हारी गुप्त बात भी सुन लूँगा।’’

अमृत ने कुछ विचार किया और फिर अपने साथ आती स्त्री से अंग्रेजी मंस कहा, ‘‘प्रिय! यह एक मित्र है। यह हम दोनों को आज रात खाने पर आमन्त्रित कर रहा है। मैं समझता हूँ कि हम स्वीकार कर लें।’’

‘‘जैसा आप चाहें। मुझे तो कल दिन के समय ही काम है।’’

इस पर कुलवन्त ने आगे बढ़ अपना परिचय स्वयं ही दे दिया, ‘‘मैं कुलवन्तसिंह, मिस्टर अमृत का एक सम्बन्धी हूँ। आप हमारे साथ ही गाड़ी पर आ जाइये। गाड़ी में एक अन्य मित्र भी है।’’

अब अमृतलाल ने साथ आ रही स्त्री का परिचय करा दिया। उसने बताया, ‘‘कुलवन्तजी! यह है मिसेज सूसन आनन्द।’’ कहते-कहते अमृत ने मुस्कराते हुए कुलवन्त की ओर देखा।

कुलवन्त ने उसे आश्वस्त करने के लिये कह दिया, ‘‘यह तो मैं समझ गया था।’’ वे टैक्सी की ओर चल पड़े थे। स्त्री ने अपने हाथ में एक छोटा-सा सूटकेस उठाया हुआ था। वह कुलवन्त के दूसरी ओर चल रही थी।

कुलवन्त ने पुनः हिन्दी में बात करनी आरम्भ कर दी, ‘‘यह कहाँ मिल गयी है तुम्हें?’’

‘‘मैं अपने अफसर से बात कर रहा हूँ अथवा जीजाजी से?’’

‘‘यहाँ तो जीजा ही समझो।’’

‘‘तो मैं आपको पूर्ण कथा होटल में चलकर सुनाऊँगा।’’

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