उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैं आपसे पृथक् में मिलकर बात करूँगा। आप कहाँ ठहरने जा रहे हैं?’’
‘‘मैं एक मित्र के साथ ही उसके घर पर जा रहा हूँ। वह किंग्स रोड पर एक फ्लैट में रहता है।’’
‘‘आप मुझे फ्लैट का नम्बर बता दीजिये। मैं कल आपके साथ प्रातः का अल्पाहार ले सकता हूँ।’’
‘‘धन्यवाद।’’ कुलवन्त ने कहा, ‘‘मैं बता सकता हूँ, परन्तु तुम मेरे साथ अभी क्यों नहीं चलते? हम डिनर इकट्ठे ले सकते है।’’
‘‘परन्तु मेरे साथ एक विशेष व्यक्ति है। मैं इसे छोड़कर नहीं जा सकता।’’
‘‘तो इसे भी ले आओ। मेरे साथ भी एक मित्र है। हम चार और यदि तुम आपत्ति न करो तो मित्र की पत्नी और बच्चे भी साथ आ जायेंगे।’’
कुलवन्त को भय लग गया था कि यदि अमृत गया तो पुनः नहीं मिलेगा और वह उसके बच निकलने की कहानी सुनना चाहता था तथा फिर घर पर सूचना भेजने की बात भी थी।
अमृत ने कहा, ‘‘जीजाजी! मैं तो आपसे पृथक् में बात करना चाहता हूँ। उसके गुप्त होने के कारण आप जानते ही हैं।’’
‘‘इसी कारण कहता हूँ कि तुरन्त बात होनी चाहिये। मैं भी अपने कर्त्तव्य से बँधा हुआ हूँ।’’
‘‘परन्तु वहाँ निजी और पृथक् में बात करने को स्थान मिल सकेगा क्या?’’
‘‘हाँ, मिल जायेगा।’’
‘‘तो ऐसा करिये। मैं ‘सोहो स्क्वेयर’ में एक चीनी होटल में ठहरने जा रहा हूँ। मैंने वहाँ अपने लिये कमरा बुक कराया है।’’
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