उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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राम के महादेवल के धनुष पर चिल्ला चढ़ा सकने तथा परशुराम को निस्तेज करने की कथा देवलोक में इन्द्र के पास भी पहुँची। वृत्तान्त सुनाने वाले मुनि नारद थे। वह इन्द्र की सभा में पहुँचे तो इन्द्र ने पूछ लिया, ‘‘भगवन्! कहाँ से आ रहे हैं?’’
नारद ने कहा, ‘‘महाराज! मैं राम तथा उसके भाइयों के विवाह का समारोह देखने गया था। उससे पूर्व राम के शिव-धनुष को कार्य में लाने की कुशलता भी मैंने देखी और अन्त में परशुराम की राम से भेंट देखकर मैं आ रहा हूँ।’’
‘‘हाँ, तो क्या देखकर आये हैं?’’
इस पर नारद ने पूर्ण वृत्तान्त सविस्तार सुना दिया। इन्द्र इस कथा को सुनकर चकित रह गया। जब नारद पूर्ण कथा सुना चुका तो इन्द्र ने पूछा, ‘‘अब आप बताइये, आप क्या समझे हैं? क्या यह राम देवताओं का कार्य सम्पन्न कर सकेगा?’’
‘‘महाराज! देवताओं का क्या कार्य है जो आप राम से लेना चाहते हैं?’’
‘‘तो मुनिवर! आप नहीं जानते क्या?’’
‘‘जानता हूँ। बीस वर्ष। से ऊपर हुए रावण देवलोक में आया था और यहाँ कि रमणियों के बलात्कार कर गया था। तदनन्तर उसने देवलोक पर आक्रमण कर सहस्त्रों देवताओं को यमलोक में पहुँचा दिया था। परन्तु भगवन्! आप देवलोक के साथ किये अन्याय और अपमान का बदला लेना नहीं चाहते।
‘‘एक वर्ष हुआ, मैंने आपसे कहा था कि विश्वामित्र के शस्त्रास्त्र रावण को पराजित करने में समर्थ नहीं होंगे! आप अपने शस्त्रागार से उसके पास अस्त्र-शस्त्र पहुँचाइये। आपने इस दिशा में कुछ किया प्रतीत नहीं होता।’’
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