लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


इन्द्र झेंप गया। उसने अपनी अकर्मण्यता की सफाई देते हुए कहा, ‘‘मुझे अभी तक विश्वास नहीं हुआ था। कि यह राम मेरे दिव्य-अस्त्रों का प्रयोग कर भी सकेगा अथवा नहीं।’’

नारद ने दीर्घ निःश्वास लेकर कहा, ‘‘हाँ महाराज! देवताओं को आर्यों की योग्यता का ज्ञान तो तब होगा जब वे देवलोक पर आक्रमण कर इसे अपने अधीन कर लेंगे। रावण ने देवताओं को अपमानित किया, उनको लूटा, उनके स्त्री-वर्ग पर बलात्कार किया, इस कारण देवेन्द्र ने अपनी अतुल सामर्थ्य वाली ‘शक्ति’ मेघनाथ को दे दी है।

‘‘अच्छा भगवन्! आप कुशल-मंगल से तो है? आपका नाचरंग तो चल रहा है? नर्तकियाँ और अप्सरायें कुशल से तो हैं?’’

‘‘सब परमात्मा की कृपा है।’’ इन्द्र ने बात बदलती देख सुख का साँस लिया।

विष्णुशरण द्वारा कही और महिमा द्वारा लिखी कथा पढ़ते-लिखते कुलवन्त को झपकी आ गयी। वह बिस्तर में बैठा पुस्तक पढ़ रहा था। पुस्तक उसके हाथ से छूट गयी और वह बिस्तर में लेट गया।

कुलवन्त इंगलैण्ड से प्रशिक्षण प्राप्त कर लौट आया था। उसे दिल्ली पहुँचे अभी तीन-चार दिन ही हुए थे। यह पहला शनिवार था दिल्ली में आये हुए और वह आज इंगलैण्ड से लौट पहली बार इस पुस्तक को पढ़ने लगा था।

महिमा के घर एक लड़का हो चुका था। महिमा की सास सुन्दरी उसके पास रहने लगी थी। वह विचार कर रही थी कि बच्चा एक वर्ष का हो जाये तो उसे बिलासपुर ले जायेगी और उसका पालन-पोषण वहाँ पर ही करेगी। महिमा स्कूल से तीन मास के अवकाश के बाद पुनः स्कूल में जाने लगी थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book