उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
कुलवन्त ने अमृत से भेंट का कथन न तो इंगलैण्ड में अपने साथियों से किया था और न ही उसने दिल्ली आकर अमृत के साथियों से किया था। वह अपने मन में यह भी निश्चय नहीं कर सका था कि वह उसकी बात अमृत की माताजी तथा उसकी पत्नी को बताये अथवा नहीं।
उस रात वह कथा पढ़ते-पढ़ते सोया तो वह नींद में स्वप्न देखने लगा। उसे ऐसा समझ आया कि भारत देवलोक है। भारत के इन्द्र यहाँ के प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री रावण से पराजित हो गये हैं। युद्ध समाप्त हो जाने पर भी उसे स्वप्न में यह दिखायी दे रहा था कि भारत की भारी हानि हुई है और वह अपने सैनिकों की हानि और अपने अत्यावश्यक छम्ब के क्षेत्र के छिन जाने के अपमान को छुपाने के लिये अपने लोगों को अपनी भलमनसाहत और देवतापन की डुग्गी पीट-पीटकर प्रजा के आँसू पोंछ रहा था।
कुलवन्त स्वप्न में देख रहा था कि रूस में प्रधान कोसिगिन ब्रह्मा के समान देवताओं को अपमान से बचाने के लिये राक्षसों और देवताओं में संधि करवा रहे हैं।
वह देख रहा था कि संधि हुई और देवताओं को राक्षसों को प्रसन्न करने के लिये अनेकों बातें माननी पड़ी। परन्तु सबसे बड़ी बात यह हुई कि राक्षस यह सहन नहीं कर सके कि देवताओं में कोई ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है जो पराजित होकर भी कहे कि वह पराजित नहीं हुआ। वह व्यक्ति भारत का प्रधानमन्त्री था और उसको भूतल पर से निकाल देने का प्रबन्ध कर दिया गया।
उसे स्वप्न में कांग्रेसी नेता वही देवता समझ आ रहे थे जो इस घोर अपमान के समय अपने मन को सान्त्वना देने के लिये गांधी धुन गा-गाकर मन बहला रहे थे। वे मन्दिरों और राजभवनों में ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान’ का गान कर रहे थे।
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