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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


उसे सोये-सोये यह करुण-क्रन्दन असह्य हो उठा तो वह घबरा कर जाग पड़ा। वह उठकर बिस्तर में बैठ गया। उसके साथ के बिस्तर में गरिमा लेटी हुई थी। वह तो साढ़े-नौ बजे ही सो गयी थी। अतः अब पिछली रात वह भरपूर नींद ले चुकी थी। अतएव अपने साथ के पलंग पर हलचल हुई तो उसकी भी नींद खुल गयी। उसने आँखें खोल कर देखा तो उसका पति अपने पलंग पर बैठा आँखें मलता दिखायी दिया।

वह भी उठकर बैठ गयी और पूछने लगी, ‘‘क्या बात है? नींद नहीं आयी क्या?’’

‘‘देवलोक विजय का दृश्य इस समय के भारत में घट रहा है। ब्रह्मा ने दोनों पक्षों में संधि तो करा दी है, परन्तु राक्षसों को यह सहन नहीं हो सका कि उनसे पराजित देवलोक वाले डींग हाँकते फिरें कि वह जीत गये हैं।

‘‘उनको यह ज्ञान कराने के लिए कि देवता जीते नहीं, वरन् हारे हैं, उन्होंने देवेन्द्र की हत्या कर दी है।’’

गरिमा पति की बात समझ नहीं सकी। वह आश्चर्य कर पति का मुख देखने लगी। कुलवन्त ने उसे परेशान देखा तो खिलखिलाकर हँस पड़ा और बोला, ‘‘तो नहीं समझी न? सुनो, मुझे असुर तो पाकिस्तानी समझ आते हैं और देवता यहाँ के कांग्रेस वाले। ये महादेव गांधीजी की अहिसा रूपी भाँग पी मस्त पड़े थे और अपनी कल्पना का रसास्वादन करते हुए जी रहे थे।

‘‘पाकिस्तानी राक्षसों ने आक्रमण कर दिया। विवश हो ये लड़े, परन्तु सदा राष्ट्र संघ का मुख देखते रहे कि वह उनकी संधि करा दे। राष्ट्र संघ ने युद्ध-विराम तो करा दिया, परन्तु संधि नहीं करा सका। अब ब्रह्मा की भाँति कोसिगिन मंच पर आया और संधि कराने में सफल हो गया। तो इस पर असुरों ने जाते-जाते भारत के प्रधान मन्त्री की हत्या करा दी।’’

‘‘अब भारतीय देवता पुनः सो जाने की बात कर रहे हैं। वह ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ की धुन गा-गाकर मन बहलाने लगे हैं।’’

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